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    अमरनाथ यात्रा: अब बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए नहीं चलना पड़ेगा पैदल, जानें अमरनाथ की पूरी कहानी

    अमरनाथ यात्रा: अब बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए नहीं चलना पड़ेगा पैदल, जानें चार भागो में अमरनाथ की पूरी कहानी








    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र  / दीपक कुमार /पंचांग पुराण 

    अमरनाथ:- यात्रा  बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए .अब ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन भी होता है . अमरनाथ जाने वाले यात्री सरस्वती धाम टोकन सेंटर से आधार के जरिए रजिस्ट्रेशन करवा कर ऑफलाइन टोकन ले सकेंगे,  . केदारनाथ की तरह अमरनाथ की यात्रा को भी मुश्किल यात्राओं में गिना जाता है. आने वाले दिनों में अमरनाथ यात्रा के लिए पैदल नहीं चलना पड़ेगा। बालटाल से अमरनाथ गुफा तक रोपवे बनने जा रहा है। बालटाल से अमरनाथ गुफा के लिए 9 किलोमीटर का रोप-वे होगा। इससे 14 किमी के मार्ग की पैदल दूरी 10 घंटे से घटकर 40 मिनट रह जाएगी। 


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    ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि अमरनाथ यात्रा कितनी मुश्किल है और यहां जाने के लिए कितने किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. साथ ही जानते हैं कि किन मुश्किलों का सामना करने के बाद यहां पहुंचा जाता है.  अमरनाथ गुफा तिन हजार आठ सौ अस्सी  मीटर की ऊंचाई पर है. ये जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में है. अगर आसपास के बड़े शहरों से दूरी देखें तो अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 140 किलोमीटर, पहलगाम से करीब 45 से 48 किलोमीटर और बालटाल से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर है. अमरनाथ की यात्रा दो रास्ते से की जाती है. 




    एक तो आप अनंतनाग जिले से 48 किलोमीटर वाले नुनवान-पहलगाम मार्ग के जरिए यहां जा सकते हैं या फिर गांदेरबल जिले से 14 किलोमीटर बालटाल मार्ग से जा सकते हैं.ये तो आपको पता चल गया है कि अमरनाथ यात्रा के दो रूट हैं. हम सबसे पहले आपको बालटाल के रास्ते के बारे में बताएँगे फिर पहलगाम के रास्ते के बारे बालटाल वाला रूट है, जहां से आपको 14 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी होती है, लेकिन ये एकदम खड़ी चढ़ाई है. साथ ही इस रूट के रास्ते भी उतने सही नहीं है और इसे मुश्किल  ट्रैक माना जाता है. इस वजह से यहां बुजुर्ग आदि जाना पसंद नहीं करते हैं. वहीं, अगर यात्रा के दौरान बारिश हो जाती है तो ये यात्रा और भी मुश्किल हो जाती है.  बालटाल बेस कैंप ,इस रास्ते में आयेगा पहला रायल पथरी जिसकी दूरी है 2.5 किलोमीटर दूसरा है बरारी मार्ग  जिसकी दूरी है 5.5किलोमीटर तीसरा है जंक्शन जिसकी दूरी है 6.4 किलोमीटर चौथा है  काली माता मंदिर जिसकी दूरी है 7.9 किलोमीटर पांचवा है संगम जिसकी दूरी है 8.35किलोमीटर और छठा है अमरनाथ का पवित्र गुफा जिसकी दूरी है 11.75 किलोमीटर  है .


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    अब बात करते है ,पहलगाम के बारे में अगर आप पहलगाम रास्ते से जाते हैं तो इसके लिए आपको करीब 45 किलोमीटर की यात्रा करके गुफा तक पहुंचना होगा और इस पूरी यात्रा में तीन दिन लगते हैं. ये रास्ता लंबा तो है, लेकिन इस रास्ते में चढ़ाई नहीं है और आप धीरे-धीरे कम मुश्किल से यहां पहुंच जाते हैं. पहला पड़ाव में आप पहलगाम से 16KM का सफर तय कर चंदनवाड़ी पहुँचते  है  दूसरे पड़ाव में चंदनवाड़ी से 12 KM का सफर तय कर आप  शेषनाग पहुँचते है , तीसरे पड़ाव में  आप शेषनाग से 20 KM का सफर तय कर  गुफा तक पहुंचते हैं. तो वही  दूसरे रूट में कम चलना  पड़ता है और आप कम समय में इस यात्रा को पूरा कर सकते हैं. अब बात करते उंचाई की  पहलगाम वाले रास्ते में आएगा शेषनाग जो 12 हजार फिट के ऊंचाई पर है दूसरा बाबल टॉप जो 13 हजार फिट की ऊंचाई पर है तीसरा एमजी टॉप जो 14800 फिट के ऊंचाई पर है चौथा पोषपत्री जो 13500 फिट की ऊंचाई पर है पांचवा है पंजतरनी जो 11500 फिट की ऊंचाई पर है छठा है संगम टॉप जो 12000 फिट की ऊंचाई पर है और सातंवा है पवित्र गुफा जो 13500 फिट की ऊंचाई पर है.


    आपको बता दू की आने वाले दिनों में अमरनाथ यात्रा के लिए पैदल नहीं चलना पड़ेगा। बालटाल से अमरनाथ गुफा तक रोपवे बनने जा रहा है। बालटाल से अमरनाथ गुफा के लिए 9 किलोमीटर का रोप-वे होगा। इससे 14 किमी के मार्ग की पैदल दूरी 10 घंटे से घटकर 40 मिनट रह जाएगी। 


    अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को 'अमरेश्वर' कहा जाता है। इसे बाबा बर्फानी कहना गलत है। यहां की यात्रा जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा हो तो अगस्त के पहले सप्ताह तक चलती है। हिन्दू माह अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होती है यात्रा और पूरे सावन महीने तक चलती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।


     1-कैसे बनता है शिवलिंग?

    गुफा की परिधि लगभग 150 फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर सेंटर में एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि अन्य जगह टपकने वाली बूंदों से कच्ची बर्फ बनती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बन जाते हैं।

    गुफा के सेंटर में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है। चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद बूंद - पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं? अमरनाथ गुफा की तरह कई गुफाएं हैं। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे ए. सभी बर्फ से ढकी हैं और वहां पर छत से बूंद-बूंद पानी टपकता है लेकिन वहां कोई शिवलिंग नहीं बनता।


     2-क्या है इस गुफा का पौराणिक इतिहास?

    कश्मीर घाटी में राजा दश और ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का निवास स्थान था। पौराणिक मान्यता है कि एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई। उसने एक बड़ी झील का रूप ले लिया। तब ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों के द्वारा बहा दिया। उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा के दौरान वहां से गुजरे। तब जल स्तर कम होने पर हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सबसे पहले भृगु ऋषि ने अमरनाथ की पवित्र गुफा और बर्फ के शिवलिंग को देखा। मान्यता है कि तब से ही यह स्थान शिव आराधना और यात्रा का प्रमुख देवस्थान बन गया, क्योंकि यहां भगवान शिव ने तपस्या की थी .




    3-गुफा की प्राचीनता के ऐतिहासिक प्रमाण?

    अमरनाथ गुफा को पुरातत्व विभाग वाले 5 हजार वर्ष पुराना मानते हैं अर्थात महाभारत काल में यह गुफा थी। लेकिन उनका यह आकलन गलत हो सकता है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि जब 5 हजार वर्ष पूर्व गुफा थी तो उसके पूर्व क्या गुफा नहीं थी? हिमालय के प्राचीन पहाड़ों को लाखों वर्ष पुराना माना जाता है। उनमें कोई गुफा बनाई गई होगी तो वह हिमयुग के दौरान ही बनाई गई होगी अर्थात आज से 12 से 13 हजार वर्ष पूर्व।

    पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। और कैलाश को जो जाता है, वह मोक्ष पाता है। पुराण कब लिखे गए? कुछ महाभारतकाल में और कुछ बौद्धकाल में। तब पुराणों में इस तीर्थ का जिक्र है।

     4-अमरनाथ यात्रा का प्राचीन इतिहास
    वैसे तो अमरनाथ की यात्रा महाभारत के काल से ही की जा रही है। बौद्ध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद ईसा पूर्व लिखी गई कल्हण की 'राजतरंगिनी तरंग द्वितीय' में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत (34 ईपू-17वीं ईस्वी) शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा करने जाते थे। इस उल्लेख से पता चलता है कि यह तीर्थ यात्रा करने का प्रचलन कितना पुराना है।

    बृंगेश संहिता, नीलमत पुराण, कल्हण की राजतरंगिनी आदि में अमरनाथ तीर्थ का बराबर उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में कुछ महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख है, जहां तीर्थयात्रियों को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ते थे। उनमें अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी (2,811 मीटर), सुशरामनगर (शेषनाग, 3454 मीटर), पंचतरंगिनी (पंचतरणी, 3,845 मीटर) और अमरावती शामिल हैं।


    अंग्रेज लेखक लिखते हैं 

    एक अंग्रेज लेखक लारेंस अपनी पुस्तक 'वैली ऑफ कश्मीर' में लिखते हैं कि पहले मट्टन के कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ के तीर्थयात्रियों की यात्रा कराते थे। बाद में बटकुट में मलिकों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली, क्योंकि मार्ग को बनाए रखना और गाइड के रूप में कार्य करना उनकी जिम्मेदारी थी। इन्हें मौसम की जानकारी भी होती थी। आज भी चौथाई चढ़ावा इस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। पहलगांव का अर्थ होता है गड़रिए का गांव।


    300 वर्ष तक बंद रहा था यात्रा 

    जब आक्रमण हुआ तो 14वीं शताब्दी के मध्य से लगभग 300 वर्ष की अवधि के लिए अमरनाथ यात्रा बाधित रही। कश्मीर के शासकों में से एक था 'जैनुलबुद्दीन' (1420-70 ईस्वी), उसने अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। फिर 18वीं सदी में फिर से शुरू की गई। वर्ष 1991 से 95 के दौरान आतंकी हमलों की आशंका के चलते इसे इस यात्रा को स्थगित कर दिया गया था।


    गलत धारणा मुस्लिम ने खोजा अमरनाथ की गुफा 
    यह बहुत ही गलत धारणा फैलाई गई है कि इस गुफा को पहली बार किसी मुस्लिम ने 18वीं-19वीं शताब्दी में खोज निकाला था। वह गुज्जर समाज का एक गडरिया था, जिसे बूटा मलिक कहा जाता है। क्या गडरिया इतनी ऊंचाई पर, जहां ऑक्सीजन नहीं के बराबर रहती है, वहां अपनी बकरियों को चराने ले गया था? स्थानीय इतिहासकार मानते हैं कि 1869 के ग्रीष्मकाल में गुफा की फिर से खोज की गई और पवित्र गुफा की पहली औपचारिक तीर्थयात्रा 3 साल बाद 1872 में आयोजित की गई थी। इस तीर्थयात्रा में मलिक भी साथ थे।

    स्वामी विवेकानंद ने 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि मैंने सोचा कि बर्फ का लिंग स्वयं शिव हैं। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।

     क्या है गुफा के दर्शन का महत्व ?

    इस गुफा का महत्व इसलिए नहीं है कि यहां हिम शिवलिंग का निर्माण होता है। इस गुफा का महत्व इसलिए भी है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था और उन्होंने कई वर्ष रहकर यहां तपस्या की थी, तो यह शिव का एक प्रमुख और पवित्र स्थान है। शिव के 5 प्रमुख स्थान हैं- 1. कैलाश पर्वत, 2. अमरनाथ, 3. केदारनाथ, 4. काशी और 5. पशुपतिनाथ।

     तोता कबूतरो ने सुनी थी अमर कहानी 
    दरअसल, शास्त्रों के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। माता पार्वती के साथ ही इस रहस्य को शुक (तोता) और दो कबूतरों ने भी सुन लिया था। यह शुक बाद में शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गए, जबकि गुफा में आज भी कई श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है।


    इन स्थानों पर भगवान शिव ने छोड़ा था ये सामान 
     भगवान शिव जब पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के दौरान रास्ते में दिखाई देते हैं।



     पंडितों का है कश्मीर

    यह भी जनश्रुति है कि मुगल काल में जब कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था तो पंडितों ने अमरनाथ  के यहां प्रार्थना की थी। उस दौरान वहां से आकाशवाणी हुई थी कि आप सभी लोग सिख गुरु से मदद मांगने के लिए जाएं। संभवतः वे हरगोविंद सिंहजी महाराज थे। उनसे पहले अर्जुन देवजी थे। टर अर्जुन देवजी से लेकर गुरु गोविंद सिंहजी तक सभी गुरुओं ने मुगलिया आतंक से भारत की रक्षा कर उन्होंने कश्मीर को बचाया था।

    पहलगांव  इसराइल तक प्रसिद्धि था 
    दरअसल, मध्यकाल में कश्मीर घाटी पर विदेशी ईरानी और तुर्क आक्रमणों के चलते वहां अशांति और भय का वातावरण फैल गया जिसके चलते वहां से हिन्दुओं ने पलायन कर दिया। पहलगांव को विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने सबसे पहले इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि इस गांव की ऐतिहासिकता और इसकी प्रसिद्धि इसराइल तक थी। भारतीय मान्यता अनुसार यहीं पर सर्वप्रथम यहूदियों का एक कबीला आकर बस गया था। इस हिल स्टेशन पर हिन्दू और बौद्धों के कई मठ थे, जहां लोग ध्यान करते थे। ऐसा एक शोध हुआ है कि इसी पहलगांव में ही मूसा और ईसा ने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। बाद में उनको श्रीनगर के पास रौजाबल में दफना दिया गया।





     

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