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    क्या पड़ोसी देश बांग्लादेश भी म्यांमार और पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है ? या चीन की चालबाजि

    क्या पड़ोसी देश  बांग्लादेश भी म्यांमार और पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है ? या चीन की चालबाजि









    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र  / दीपक कुमार 

    नई दिल्ली:-  क्या हमारा पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश भी म्यांमार और पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है? या फिर चीन की चालबाजियों के आगे लोकतंत्र ने घुटने टेक दिए हैं। कई दिनों से बांग्लादेश में चल रहा आंदोलन अब उग्र हो चला है और हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा है।


    बेकाबू आंदोलनकारियों के आगे कानून-व्यवस्था ने लगभग दम तोड़ दिया है। राजधानी ढाका हुड़दंगियों के हवाले हो चुकी है और प्रधानमंत्री निवास में अराजकता के निशान चारों ओर दिखाई दे रहे हैं। गृहमंत्री का घर आग के हवाले हो चुका है और सत्ताधारी पार्टी के दफ्तर को जला दिया गया है।


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    इतना ही नहीं, प्रदर्शनकारियों ने बांग्‍लादेश के निर्माता और शेख हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को भी तोड़ दिया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को कई दिनों पहले ही यह समझ आ गया था कि देश की कमान उनके हाथों से निकल चुकी है। सोमवार को वो अपना विदाई भाषण दे ही रहीं थीं कि अचानक आंदोलनकारी वहां पहुंच गए और हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा।



    शेख हसीना भारत क्यों आई ?

    उधर, ढाका में सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने लोगों से शांति बहाली की अपील की है। बांग्लादेश अखबार प्रोथोम आलो के मुताबिक, प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्‍तीफा देने के बाद बहन रेहाना संग मिलिट्री हेलीकॉप्टर से भारत आ गईं अब सवाल ये उठता है की इतने मुस्लिम देश के होते हुए शेख हसीना भारत ही क्यों आई ।


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    बांग्लादेश में सेना बनाएगी अंतरिम सरकार

    सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने शेख हसीना के इस्तीफे की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि अब सेना अंतरिम सरकार बनाएगी। और कयास लगाया जा रहा है की नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मुहम्मद यूनुस देश की अंतरिम सरकार में प्रधानमन्त्री बनेगे 


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    300 की मौत और हजारों घायल

    बांग्लादेश पिछले एक महीने से हिंसा की आग में धधक रहा है। शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं। हाईवे और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले छात्रों पर पुलिस गोली मारने के साथ में आंसू गैस के गोले छोड़ रही है। इसमें 300 से ज्यादा की जान गईं और हजारों घायल हुए।



    अनिश्चितकाल के लिए लगा कर्फ्यू

    हालात इतने खराब हैं कि पूरे देश में अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है। बाजार, बैंक और कंपनियां बंद कर दी गईं। स्कूलों और कॉलेजों की छुट्टी कर दी गई। प्रदर्शन को दबाने के लिए देश में इंटरनेट सेवा पर पाबंदी लगा दी गई।



    हसीना ने प्रदर्शनकारियों के लिए क्या कहा?

    शेख हसीना और उनकी सरकार ने शुरुआत में कहा कि नौकरियों में आरक्षण को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन में छात्र शामिल नहीं थे। इसी के साथ झड़पों और आगजनी के लिए इस्लामिक पार्टी, जमात-ए-इस्लामी और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को जिम्मेदार ठहराया।


    रविवार को दोबारा हिंसा भड़कने के बाद हसीना ने कहा, ''जो लोग हिंसा कर रहे हैं, वे छात्र नहीं बल्कि आतंकवादी हैं, जोकि देश को अस्थिर करना चाहते हैं। मैं देशवासियों से अपील करती हूं कि वे इन आतंकियों को रोकने के लिए एकजुट हो जाएं।''



    हसीना की पार्टी के छह नेताओं की मॉब लिंचिंग

    प्रदर्शनकारियों ने नरसिंगडी जिले में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के छह कार्यकर्ताओं को मॉब लिंचिंग कर मार डाला। स्‍थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दोपहर में प्रदर्शनकारियों ने जुलूस निकाला था, जिसे लेकर अवामी लीग के कार्यकर्ता नाराज हो गए थे।


    उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें चार प्रदर्शनकारी घायल हो गए। इस पर भड़के प्रदर्शनकारियों ने पलटवार किया। अवामी लीग के कार्यकर्ता डरकर एक मस्जिद में छिप गए, जहां से निकालकर उनको पीट-पीटकर मार डाला।


    शेख हसीना का इस्‍तीफा क्यों मांग रहे प्रदर्शनकारी?

    नौकरियों में आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारी हिंसा और मौतों क लिए हसीना सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। वहीं हसीना के विरोधी और मानवाधिकार समूहों ने उनकी सरकार पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने का आरोप लगाया है। इसलिए शेख हसीना का इस्‍तीफा मांग रहे थे। हालांकि सरकार इन आरोपों से इनकार करती रही है।


    बांग्लादेश में प्रदर्शन कब और क्यों शुरू हुए?

    बांग्लादेश में सरकार ने साल 2018 में अलग-अलग समुदाय को मिलने वाला 56 प्रतिशत आरक्षण खत्म कर दिया था। इस साल 5 जून को ढाका हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया और दोबारा आरक्षण लागू कर दिया। इसके बाद पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे, जिनमें 150 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।


    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट के फैसले में परिवर्तन करते हुए आरक्षण की सीमा 56 प्रतिशत से कम कर 7% कर दी। इसमें 5 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार को (जो पहले 30% था) और 2 प्रतिशत एथनिक माइनॉरिटी, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग के लिए तय कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 93 प्रतिशत नौकरियां मेरिट के आधार पर मिलेंगी। सिर्फ 7 प्रतिशत आबादी को ही आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसके बाद आंदोलन मंद पड़ने लगा था। इसके बाद से प्रदर्शन धीमे होने लगे थे।


    दोबारा क्यों हिंसक हुए प्रदर्शनकारी?

    हाई कोर्ट के फैसले के बाद हुए विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे छह लोगों को डिटेक्टिव ब्रांच ने सुरक्षित रखने के नाम पर छह दिनों तक हिरासत में रखा। इनमें से नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर मजूमदार घायल थे। उनका हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। डिटेक्टिव ब्रांच के अधिकारी इन तीनों को अस्पताल से उठाकर ले गई।


    इनसे आंदोलन को वापस लेने के लिए जबरदस्ती वीडियो बनवाया। जब आंदोलनकारी नेता कैद में थे, तब गृहमंत्री असदुज्जमां कमाल ने ये दावा किया था कि इन लोगों ने स्‍वेच्‍छा से आंदोलन खत्म करने की बात कही है। जब आंदोलनकारियों को छोड़ा गया और इस पूरी घटना का खुलासा हुआ तो प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़क गया।




    इसके बाद से ही प्रदर्शनकारी मांग कर रहे कि...

    प्रधानमंत्री शेख हसीना सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे।

    प्रधानमंत्री पद से हसीना अपना इस्‍तीफा दें।

    इंटरनेट कनेक्‍शन की बहाली करें।

    कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसरों को फिर से खोलें।

    गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को जल्द से रिहा करें।

    हसीना जनवरी में लगातार चौथी बार PM बनी थीं 

    76 वर्षीय शेख हसीना ने इसी साल जनवरी में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री पद संभाला था। जनवरी में हुए आम चुनाव में हसीना की पार्टी अवामी लीग ने 300 संसदीय सीटों में से 204 सीटों पर जीत दर्ज की थी,जबकि हसीना ने लगातार आठवीं बार चुनाव जीता था। हसीना पहली बार 1986 में चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं।


    हसीना के प्रधानमंत्री के तौर पर यह पांचवां कार्यकाल था। पहली बार वे साल 1996 से 2001 तक पीएम रही थीं। इसके बाद साल 2009 में फिर प्रधानमंत्री बनीं। तब से 5 अगस्त 2024 तक या सत्ता पर काबिज रहीं।



    बेटी को पिता के बनाए देश को छोड़कर भागना पड़ा

    बांग्लादेश के लोग पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता मानते हैं। दरअसल, मुजीबुर रहमान ने ही भारत से मदद मांग कर बांग्लादेश का पाकिस्तान से आजाद कराया था। इसलिए मुजीबुर रहमान को भारत में बंगबंधु के नाम से बुलाया जाता है।


    जब बांग्लादेश बना था, तब वहां के हालात सही नहीं थे। तब उनके पिता मुजीबुर रहमान ने शेख हसीना को भारत में रखा था। इसलिए शेख हसीना के बचपन से लेकर पढ़ाई-लिखाई सब भारत में ही हुई है। इसलिए भी शेख हसीना का भारत से पुराना संबंध रहा है। बांग्लादेश से जान बचाकर भागने के बाद हसीना ने सबसे पहले भारत का रुख किया है।


    हसीना के पिता समेत परिवार के 17 लोगों की हुई थी हत्‍या 

    28 सितंबर 1947 ढाका में जन्मी शेख हसीना अपने घर की सबसे बड़ी बेटी हैं। जब वह दिल्‍ली से ढाका लौटी तो उन्होंने छात्र नेता के तौर पर राजनीति में कदम रखा था। लोगों से सराहना मिली तो हसीना ने पिता की अवामी लीग के स्टूडेंट विंग को संभाला। हसीना ने 1968 में भौतिक विज्ञानी एम. ए. वाजेद मियां से शादी की थी। दोनों के एक बेटा सजीब वाजेद और बेटी साइमा वाजेद हैं।



    साल 1975 की बात है। हसीना को पार्टी की कमान संभाले कुछ दिन ही हुए थे कि सेना ने बगावत कर हसीना के परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उस दिन शेख हसीना ने अपने पिता ही नहीं, बल्कि मां और भाई समेत परिवार के 17 लोगों को खोया था। हसीना, उनके पति वाजिद मियां और छोटी बहन रेहाना विदेश में होने की वजह से बच गई थीं।



    हसीना ने पहले भी ली थी भारत में शरण

    पिता और परिवार के सदस्यों की हत्‍या के वक्‍त हसीना जर्मनी में थीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से हसीना के अच्छे रिश्ते थे। इंदिरा गांधी ने हसीना को भारत बुलाया और फिर वह कुछ सालों तक दिल्‍ली में ही रहीं। 1981 में अपने वतन बांग्‍लादेश लौटीं। वहां हसीना ने वापस अपनी पार्टी का कार्यभार संभाला। अपने कार्यकाल में हसीना ने पार्टी में कई बदलाव किए।


    क्या बांग्लादेश में फिर बहाल हो पाएगी लोकतांत्रिक सरकार?

    अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह बताते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद बांग्लादेश में लोकतंत्र का क्या होगा, इसका इंतजार करना होगा। वहां पिछले 15 साल से कोई दूसरी राजनीतिक पार्टी नहीं है। अभी सेना अंतरिम सरकार बना रही है तो कोई दूसरी पार्टी कब सरकार बनाएगी।



    क्‍या सेना की मिलीभगत थी?

    प्रोफेसर स्वर्ण सिंह बताते हैं कि भारत को सीमाओं की निगरानी बढ़ानी होगी। साल 2011 में भी वहां विरोध प्रदर्शन हुए थे। तब प्रदर्शनकारियों ने 'शेख हसीना हटाना, देश को भारत की पपेट बनने से बचाना है' जैसे नारे लगाए थे।


    ऐसे में कुछ महीने पहले जिस पार्टी ने 300 में से 204 सीटें जीतीं, उसकी नेता को एक विरोध प्रदर्शन के बाद इस तरह देश छोडना पड़े और फिर दो घंटे बाद ही सेना प्रमुख मीडिया के सामने बयान दें कि ये प्रदर्शनकारी नहीं, क्रांतिकारी हैं। साफ है किइस आंदोलन के पीछे सेना की मिलीभगत थी।

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