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    नहीं करे पशुपतिनाथ से पहले नंदी का दर्शन ,जाने बाबा पशुपतिनाथ जुड़ी जानकारी

    नहीं करे पशुपतिनाथ से नंदी का दर्शन ,जाने बाबा पशुपतिनाथ जुड़ी जानकारी








    We News 24 Digital News» रिपोर्टिंग सूत्र  / दीपक कुमार 


    नई दिल्ली :- दुनिया में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है . एक नेपाल के काठमांडू में तो दूसरा भारत के मंदसौर में दोनों ही मंदिर में मूर्तियां एक समान है . नेपाल का मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है . और इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल किया गया है .यह मंदिर भव्य है . और यहां पर देश-विदेश के सैलानी आते हैं . 

    पशुपति का अर्थ है 

    पशु अर्थात जीव या प्राणी पति का अर्थ है स्वामी और नाथ का अर्थ है मालिक या भगवान इसका मतलब यह है कि संसार के समस्त जीवों के स्वामी है भगवान पशुपतिनाथ . 







    पशुपति मंदिर का इतिहास
     ऐसी मान्यता है कि यह लिंग,वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था. पशुपतिनाथ काठमांडू घाटी के प्राचीन शासको अधिष्ठाता का देवता रहे हैं. पाशुपत संप्रदाय के इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किंतु कुछ जगह पर या उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था .605 ईस्वी में अमशूवर्मन भगवान को चरण छूकर अपने को अनुग्रहित माना था. बाद में इस मंदिर का पुनः र्निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था.इस मंदिर को दीमक की वजह से बहुत नुकसान हुआ जिसके कारण लगभग 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया . बाद में मध्य युग तक मंदिर की कई नकलों का निर्माण कर लिया गया. ऐसे मंदिर में 1480में भक्तपुर 1566 में ललितपुर और 19 वी सदी में बनारस के प्रारंभ में शामिल है . मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया .अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल के कुछ बाहरी इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गई थी. जबकि पशुपतिनाथ का मुख्य मंदिर और मंदिर की गर्भ गृह को किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई थी.


    मंदिर में भारतीय पुजारी

     मंदिर के पुजारी पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मण को आमंत्रित किया था बाद में माला राजवंश के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण की इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे वर्तमान में प्रचंड सरकार के काल में भारतीय ब्राह्मण का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का प्रभाव सौंप दिया गया .




    कब खुलता है यह मंदिर
     यह मंदिर प्रत्येक दिन प्रात 4:00 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक खुला रहता है केवल दोपहर के समय और शाम के 5:00 पर बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर में जाने का सबसे उत्तम समय सुबह-सुबह जल्दी और देर शाम का होता है पूरे मंदिर का परिसर का भ्रमण करने के लिए आपको 90 से 120 मिनट का समय लगता है 

     
    पशुपतिनाथ मंदिर का परिचय 
    नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर काठमांडू के पास देव पाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है. मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति स्थापित है. पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एक मुख ऊपर की ओर है . प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल मौजूद है .मान्यता अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिलिंग पारस पत्थर के समान है . कहते हैं कि यह पांच मुंह अलग-अलग दिशा के गुणों का परिचय देते हैं. पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्वपुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सदज्योत कहते हैं. उत्तर दिशा की ओर वाले मुख को वामदेव या अर्धनारीश्वर कहते हैं. और दक्षिण दिशा वाले मुख को अधोरा कहते हैं . जो मुख ऊपर की ओर है इसे ईशान मुख कहा जाता है .


    मन्दिर में  चार दरवाजे
    इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं . वह चारों दरवाजे चांदी के हैं. पश्चिमी द्वार के ठीक सामने शिव जी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा है. जिसका निर्माण पीतल से किया गया है. इस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई मंदिर और प्रतिमाएं हैं.पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है.



    मुख्य पागोडा शैली का मंदिर

     यह मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का एक अच्छा मिश्रण है. मुख्य पागोडा शैली का मंदिर सुरक्षित आंगन में स्थित है. जिसका संरक्षण नेपाल पुलिस द्वारा किया जाता है .यह मंदिर लगभग 264 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें 518 मंदिर  और स्मारक सम्मिलित है. मंदिर की द्वितीय स्तरीय छत का निर्माण तांबे से किया गया है. जिन पर सोने की परत चढ़ाई गई है. मंदिर वर्गाकार के एक चबूतरे पर बना है जिसकी आधार से शिखर तक की ऊंचाई 23 मीटर 7 सेंटीमीटर है मंदिर का शिखर सोने का है. जिसे ग़जूर कहते हैं. परिसर के भीतर दो गर्भगृह है एक भीतर और दूसरी बाहर भीतरी गर्भगृह वह स्थान है जहां शिव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है. जबकि बाहरी गर्भगृह एक खुला गलियारा है .


    मन्दिर के भीतरी आँगन में मौजूद प्रतिमा 

     भीतरी आंगन में मौजूद मंदिर और प्रतिमाओं में बासुकीनाथ ,मंदिर उन्मत्त भैरव मंदिर,सूर्य नारायण मंदिर, कीर्ति मुख भैरव मंदिर, बूढ़ा नीलकंठ मंदिर, हनुमान मूर्ति, और 184 शिवलिंग मूर्तियां प्रमुख रूप से मौजूद है. जबकि बाहरी परिसर में राम मंदिर,विराट स्वरूप मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंग और पंद्रा शिवालय गृहेश्वरी मंदिर के दर्शन किए जाते हैं . पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्याघाट स्थित है. प्राचीकाल से ही केवल इसी घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाने का प्रावधान है .


    मंदिर दर्शन की मान्यता 
    पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती .हालांकि शर्त ये है कि शिवलिंग के पहले नदी के दर्शन ना करें यदि ऐसा करते है तो फिर अगले जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है. मंदिर की महिमा के बारे में आसपास के लोगों से आप काफी कथा कहानी भी सुन सकते हैं .मंदिर में अगर कोई घंटा आधा घंटा ध्यान करता है तो वह जीव कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त हो जाता है .

    पौराणिक कथा 
    एक पुरानी कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में बैठे थे. जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर चलांग लगा दी. कहा जाता है कि इस दौरान उनका सिंग के चार टुकड़े हो गया इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे .

    दूसरी कथा एक चरवाहे से जुड़ी है.कहते हैं कि इस शिवलिंग को एक चरवाहे द्वारा खोजा गया था जिसकी गए अपने दूध से अभिषेक कर शिवलिंग के स्थान का पता लगाया था.

     तीसरी कथा भारत के उत्तराखंड राज्य से जुड़ी एक पौराणिक कथा से है इस कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है. कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिव जी ने भैंस के स्वरूप में दर्शन दिए थे.जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूरे समाने से पहले भीम ने उनकी पूछ पकड़ ली थी . जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है. पुराणों में पंच केदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है.

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