We News 24 Hindi / रिपोर्टिंग सूत्र / दीपक कुमार
नई दिल्ली :- यह स्पष्ट है कि दक्षिणी दिल्ली मेहरौली के विधायक नरेश यादव को आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनावी मैदान से हटाने का निर्णय मुख्य रूप से मुस्लिम वोट बैंक को बनाए रखने की रणनीति के तहत लिया। नरेश यादव का कुरान बेअदबी मामले में दोषी ठहराया जाना और इस मुद्दे पर विपक्ष (विशेष रूप से कांग्रेस और AIMIM) की आक्रामक प्रतिक्रिया ने पार्टी को यह कदम उठाने पर मजबूर किया। नरेश यादव के बदले चुनावी मैदान मेहरौली के वर्तमान पार्षद रेखा महेंद्र चौधरी के पति महेंद्र चौधरी को टिकट दिया गया है .
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2. महेंद्र चौधरी की उम्मीदवारी:
परिचय:
- महेंद्र चौधरी मेहरौली क्षेत्र में पार्षद रेखा महेंद्र चौधरी के पति हैं।
- उन्हें नए चेहरे के रूप में पेश किया गया, लेकिन उन पर भी कई विवाद और आरोप हैं।
अवैध कब्जे का मामला:
- महेंद्र चौधरी पर सरकारी जमीन पर कब्जा करके निजी कार्यालय बनाने का आरोप है।
- यह आरोप उनकी छवि को कमजोर कर सकता है, खासकर जब "आप" भ्रष्टाचार और नैतिक राजनीति के दावे करती है।
जनता में नाराजगी:
- रेखा महेंद्र चौधरी (पार्षद) के कार्यकाल को लेकर जनता में असंतोष है, जो महेंद्र चौधरी की उम्मीदवारी के लिए चुनौती बन सकता है।
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महरौली विधानसभा
अगर बात करे दिल्ली महरौली विधानसभा की तो इस क्षेत्र में 2020 के आंकड़ों के अनुसार कुल 1,15,104 मतदाता थे, जिनमें 63,308 पुरुष, 51,794 महिलाएं, और 2 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल थे। हालांकि, जातिगत आधार पर मतदाताओं की सटीक संख्या के आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। महरौली क्षेत्र में विभिन्न जातियों का मिश्रण है, जिसमें प्रमुख रूप से यादव, गुर्जर, जाट ,मुस्लिम, समुदाय के आलावा उत्तराखंड के साथ पूर्वांचल के लोग भी शामिल हैं। और इन लोगो की उपस्थिति चुनावी रणनीतियों और उम्मीदवार चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कांग्रेस और ओवैसी की चुनौती:
- कांग्रेस और AIMIM (ओवैसी की पार्टी) ने नरेश यादव के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था, कुरान बेअदबी मामले को लेकर मुस्लिम समुदाय में "आप" की छवि पर सवाल खड़े किए।AIMIM जैसे दल मुस्लिम मुद्दों को लेकर मुखर हैं, और उनका प्रभाव मुस्लिम बहुल इलाकों में बढ़ रहा है।
- मुस्लिम मतदाताओं का महत्व:दिल्ली के कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं।"आप" को इस बात का डर था कि यदि नरेश यादव को उम्मीदवार बनाए रखा गया, तो मुस्लिम मतदाता कांग्रेस या AIMIM की ओर झुक सकते हैं।मेहरौली विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं, जो चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
विपक्ष का हमला:
- कांग्रेस ने नरेश यादव को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर आप पर तीखे हमले किए।
- विपक्ष ने इसे "आप की मुस्लिम विरोधी नीतियों" का प्रतीक बताया, जिसका मुस्लिम मतदाताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया:
- पार्टी को मिले फीडबैक से स्पष्ट हो गया कि यदि नरेश यादव को उम्मीदवार बनाए रखा गया, तो मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस या AIMIM की ओर हो सकता है।
- मुस्लिम बहुल इलाकों से मिले इस फीडबैक ने पार्टी को रणनीतिक बदलाव के लिए मजबूर किया।
नरेश यादव का चुनावी मैदान से हटना:
आत्मसमर्पण या रणनीति?
- नरेश यादव ने खुद कहा कि वे तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक कि उन्हें अदालत से सम्मानपूर्वक बरी नहीं किया जाता।
- हालांकि, यह निर्णय व्यक्तिगत से अधिक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगता है, क्योंकि पार्टी ने मुस्लिम वोटों को बचाने के लिए नरेश यादव को चुनावी मैदान से हटाया ।
- अगर केजरीवाल मुस्लिम वोटों की इतनी चिंता था तो पहले की लिस्ट में नरेश यादव का नाम का घोषणा क्यों किया ?
पार्टी की नैतिकता बनाए रखने का दावा:
- केजरीवाल की पार्टी ने इस निर्णय को नैतिकता और "मुस्लिम समुदाय की भावनाओं" का सम्मान बताया।
- पार्टी ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वह धार्मिक संवेदनशीलता को गंभीरता से लेती है।
चुनावी प्रभाव:
1. मुस्लिम वोट बैंक का प्रबंधन:
- नरेश यादव को हटाने से मुस्लिम मतदाताओं के असंतोष को कम करने की कोशिश की गई।
- यह कदम मुस्लिम समुदाय के प्रति पार्टी की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
2. विपक्ष को जवाब:
- इस फैसले से कांग्रेस और AIMIM द्वारा किए जा रहे हमलों की धार कमजोर हो गई।
- विपक्ष इस मुद्दे को अब "आप के वंशवाद" या "राजनीतिक दबाव" के रूप में प्रचारित करने की कोशिश कर सकता है।
3समर्थकों की प्रतिक्रिया:
- नरेश यादव के हटने से नरेश यादव व्यक्तिगत समर्थकों के बीच नाराजगी हो सकती है।
- पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस फैसले से यादव समुदाय और समर्थकों पार्टी के खिलाफ न जाए।
क्या यह सही निर्णय था?
सकारात्मक:
- नरेश यादव को हटाकर आप ने मुस्लिम वोट बैंक को बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम उठाया।
- इससे पार्टी ने अपनी छवि को धार्मिक और संवेदनशील मुद्दों पर जिम्मेदार साबित करने की कोशिश की।
नकारात्मक:
- इस कदम से नरेश यादव के समर्थकों में असंतोष हो सकता है।
- यदि महेंद्र चौधरी को स्थानीय समर्थन नहीं मिला, तो पार्टी को नुकसान हो सकता है।
नरेश यादव का पक्ष :
यादव ने कहा कि वह केजरीवाल की ईमानदारी से प्रभावित होकर आप में शामिल हुए थे और पार्टी से उन्हें बहुत कुछ मिला है. आप ने अगले साल फरवरी में होने वाले 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपने सभी उम्मीदवारों की घोषणा पहले ही कर दी है.
नरेश यादव पर कुरान बेअदबी का मामला :
इससे पहले 24 जून 2016 को पंजाब के मलेरकोटला में सड़क पर कुरान के पन्ने बिखरे मिले थे. इसके बाद गुस्साई भीड़ ने हिंसा की और वाहनों को आग के हवाले कर दिया था. इस मामले में यादव समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था. यादव को मार्च 2021 में निचली अदालत ने बेअदबी मामले में बरी कर दिया था। हालांकि, मामले में शिकायतकर्ता ने उनके बरी होने के फैसले को चुनौती दी थी.
निष्कर्ष:
नरेश यादव को हटाने का फैसला आप की रणनीति का हिस्सा है, जिसे मुस्लिम वोट बैंक बचाने और विपक्ष के हमलों को रोकने के लिए लिया गया। हालांकि, इस निर्णय का चुनावी प्रभाव पार्टी की आगे की रणनीति, नए उम्मीदवार की स्वीकार्यता, और स्थानीय समीकरणों पर निर्भर करेगा।
नरेश यादव की उम्मीदवारी वापस लेने और महेंद्र चौधरी को मेहरौली विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी (आप) का उम्मीदवार बनाए जाने का निर्णय कई राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं से प्रभावित है।
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