चीन ने ही फैलाई थी कोरोना महामारी! अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
We News 24 Hindi / एजेंसी
वाशिंगटन:- कोविड-19 महामारी, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया, की उत्पत्ति अब भी एक विवादास्पद और अनसुलझा मुद्दा बनी हुई है। इसके पीछे के कारणों और स्रोत को लेकर वैज्ञानिक, शोधकर्ता और खुफिया एजेंसियां लगातार शोध कर रही हैं। हालांकि, अभी तक कोई ठोस और सर्वसम्मत निष्कर्ष नहीं निकल पाया है।
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अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की हालिया समीक्षा रिपोर्ट ने कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायरस की लैब से निकलने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, और शक की दिशा चीन की ओर इशारा करती है। हालांकि, यह निष्कर्ष किसी नई खुफिया जानकारी पर आधारित नहीं है, बल्कि पहले से उपलब्ध साक्ष्यों के विश्लेषण का परिणाम है।
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यह रिपोर्ट बाइडन प्रशासन और सीआईए के पूर्व निदेशक विलियम बर्न्स के कार्यकाल के दौरान तैयार की गई थी। रिपोर्ट में एजेंसी ने स्वीकार किया है कि उनके निष्कर्ष पर "कम विश्वास" है, यानी इसके प्रमाण अभी भी अपर्याप्त और असंगत हैं।
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सीआईए की इस रिपोर्ट ने कोविड-19 की उत्पत्ति को लेकर लैब-रिसाव सिद्धांत को एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। रिपोर्ट में इस बात की संभावना जताई गई है कि प्राकृतिक उत्पत्ति की तुलना में वायरस के चीन की प्रयोगशाला (संभवत: वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी) से निकलने की संभावना अधिक है। हालांकि, एजेंसी ने अपने इस आकलन पर "कम विश्वास" व्यक्त किया है, जो यह दर्शाता है कि इसके समर्थन में ठोस और निर्णायक साक्ष्य अब भी नहीं हैं।
यह रिपोर्ट जॉन रैटक्लिफ के नेतृत्व में सार्वजनिक की गई, जो हाल ही में सीआईए के निदेशक के रूप में शपथ ले चुके हैं। रैटक्लिफ का चयन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया था।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि साक्ष्य अपर्याप्त और विरोधाभासी हैं, और इससे कोई ठोस निष्कर्ष निकालना मुश्किल है। पहले भी कोविड-19 की उत्पत्ति पर कई रिपोर्ट्स आई हैं, जिनमें अलग-अलग दावे किए गए हैं—कुछ प्राकृतिक स्रोत से उत्पत्ति का समर्थन करती हैं, तो कुछ लैब-रिसाव सिद्धांत को।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन के अधिकारियों के सहयोग के बिना इस बहस को सुलझाना लगभग असंभव है। चीनी सरकार ने पारदर्शी जांच में बाधाएं खड़ी की हैं, जिससे साक्ष्यों तक पहुंच और निष्पक्ष जांच मुश्किल हो गई है।
यह विवाद न केवल वैज्ञानिक, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील है। इस पर अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पारदर्शिता बेहद जरूरी है।
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