जातिगत भेदभाव, ऊंच-नीच की प्रथाओं और धार्मिक पाखंड का विरोध किया महान संत रविदास
We News 24 Hindi / दीपक कुमार
संत रविदास समाज सुधारक, भक्त कवि और संत परंपरा के प्रमुख प्रचारक थे। उन्होंने समाज में फैली ऊँच-नीच और भेदभाव जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और मानवता, समानता और प्रेम का संदेश दिया। उनका एक कहावत आज भी बहुत प्रसिद्ध है "मन चंगा तो कठौती में गंगा आइए उनके जीवन और योगदान के बारे में विस्तार से जानते हैं
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संत रविदास (Sant Ravidas) 15वीं शताब्दी के महान संत, कवि, समाज सुधारक और दार्शनिक थे। उन्होंने भक्ति आंदोलन को गति दी। उनके जीवन और शिक्षाओं ने लोगों को सामाजिक समानता, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया। संत रविदास एक महान संत, कवि, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तकों में से एक थे।
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उन्होंने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव, ऊंच-नीच की प्रथाओं और धार्मिक पाखंड का विरोध किया। वे निर्गुण भक्ति परंपरा के संत थे और उनकी वाणी का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में भी मिलता है। संत रविदास का जीवन और शिक्षाएं आज भी समाज को प्रेम, समानता और सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाती हैं। उनकी शिक्षाएं भक्ति और समानता पर केंद्रित थीं।
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उन्होंने लोगों को आध्यात्मिक जागरूकता और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया। रविदास ने अपने लेखन और कविताओं के माध्यम से सामाजिक सुधार के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। उन्होंने हमेशा लोगों को सिखाया कि प्रेम बिना किसी भेदभाव के किया जाना चाहिए
परिचय
पूरा नाम: संत रविदास (रैदास, रोहिदास, रूहिदास)
जन्म: माघ पूर्णिमा, संवत् 1398 (सन् 1414 ईस्वी के आसपास)
जन्मस्थान: सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता नाम:: संतोख दास
माताका नाम : कलसा देवी
पत्नी का नाम : लोना देवी
संतान: विजयदास (पुत्र), रविदासिनी (पुत्री)
निधन: संवत् 1520 (सन् 1528 ईस्वी के आसपास)
संत रविदास के पिता संतोख दास का जूतों का कारोबार था। रविदास भी अपने पिता के काम में हाथ बंटाते थे। रविदास का शुरू से ही संतों और ईश्वर भक्ति की ओर काफी झुकाव था। इस वजह से जब भी वह किसी संत या फकीर को नंगे पांव देखते तो अक्सर बिना पैसे लिए उन्हें नए जूते-चप्पल दे देते थे। उनके व्यवहार के कारण रविदास के संपर्क में आने वाले लोग उन्हें काफी पसंद करते थे। साथ ही वह विद्वानों की संगति में भी काफी समय बिताते थे। जब यह बात उनके पिता को पता चली तो वह काफी नाराज हुए। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। पिता द्वारा घर से निकाले जाने के बाद रविदास ने अपने लिए एक झोपड़ी बनाई और जूते-चप्पल की मरम्मत का काम शुरू कर दिया। वह अपने छोटे से कारोबार से होने वाली आय से अपना गुजारा करते थे और साधु-संतों की संगति में रहते थे।
संत रविदास जी के प्रमुख योगदान
जातिवाद और ऊँच-नीच के विरोधी उन्होंने समाज में सभी को समान मानने का संदेश दिया और जाति व्यवस्था को नकारा।
"जात-पात के पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई" – यानी ईश्वर भक्ति में जात पात का कोई स्थान नहीं है ।
सामाजिक समरसता का संदेश
संत रविदास ने "बेगमपुरा" नामक एक आदर्श समाज की कल्पना की, जहाँ कोई दुख, अन्याय या भेदभाव न हो।
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’
उन्होंने यह संदेश दिया कि बाहरी आडंबरों से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक शुद्धता है।
यानी मन की पवित्रता से ही इंसान का जीवन सार्थक बनता है।
एक बार रविदास के कुछ विद्यार्थी और अनुयायियों ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिए पूछा तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। संत रविदास के एक विद्यार्थी ने उनसे दोबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा मेरा मानना है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ है। मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा और ह्दय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाए। संत द्वारा तब कही गई यह कहावत आज भी लोगों के बीच में बहुत प्रसिद्ध है।
कर्म और ईमानदारी पर जोर
वे मानते थे कि व्यक्ति को अपने परिश्रम और ईमानदारी से कमाए गए धन से ही जीवनयापन करना चाहिए।
भक्ति आंदोलन में योगदान
संत रविदास निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रमुख संतों में से एक थे।
उन्होंने रचनाओं के माध्यम से प्रेम, भक्ति और समानता का प्रचार किया।
उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में भी संग्रहीत हैं।
प्रसिद्ध कथन और दोहे
"ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसै, रैदास रहे प्रसन्न।।"
– उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ कोई भूखा न रहे और सभी समान हों।
"जात-पात के पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।"
– ईश्वर भक्ति में जाति या धर्म का कोई भेदभाव नहीं होता।
संत रविदास की विरासत
उनका जन्मस्थान वाराणसी (सीर गोवर्धनपुर) आज एक पवित्र तीर्थस्थल है।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके अनुयायी बड़ी संख्या में हैं।उनकी जयंती माघ पूर्णिमा को बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
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