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    श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये :काशी में बाबा विश्वनाथ के दरबार में जाएं और यह श्लोक न दोहराएं तो आपकी यात्रा व्यर्थ है

     

    श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये :काशी में बाबा विश्वनाथ के दरबार में जाएं और यह श्लोक न दोहराएं तो आपकी यात्रा व्यर्थ है





    We News 24 Hindi / पंचांग पुराण  


     काशी:- (वाराणसी) में श्री विश्वनाथ जी के दरबार में जाकर उनकी महिमा का गुणगान करना और उनके श्लोकों का जाप करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है, और यहां की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भगवान विश्वनाथ के समक्ष अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त नहीं करते।

    यह श्लोक भगवान विश्वनाथ की महिमा और उनकी कृपा पाने की प्रार्थना को दर्शाता है। इसे दोहराने से भक्त का मन शुद्ध होता है और उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। अगर कोई काशी जाए और इस श्लोक का जाप न करे, तो यह यात्रा अधूरी लग सकती है, क्योंकि यह श्लोक भक्ति और समर्पण की गहरी भावना को व्यक्त करता है।


    इसलिए, काशी यात्रा के दौरान बाबा विश्वनाथ के दरबार में जाकर इस श्लोक का जाप करना चाहिए:

    "श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये"
    (मैं श्री विश्वनाथ की शरण में आता हूँ।)

    यह न केवल आपकी यात्रा को सार्थक बनाएगा, बल्कि आपके मन को शांति और आत्मिक आनंद भी प्रदान करेगा।

    यह एक सुंदर भजन है जो भगवान शिव को समर्पित है, विशेष रूप से काशी (वाराणसी) के विश्वनाथ जी को। इस भजन में भक्त भगवान शिव की शरण में जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं और उनसे पापों को दूर करने, दुखों को हरने और संसार के बंधनों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हैं। 


    आइए इस भजन का अर्थ समझते हैं:


    पद्य १:

    श्री विश्वनाथ शरणागतं सानन्दमानन्द वने,
    भगवान विश्वनाथ, मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप आनंद के सागर हैं और आनंदमय वन (काशी) में विराजमान हैं।

    वसन्तमानान्द हतपापवृन्दम्।
    आप सभी पापों को नष्ट करने वाले हैं और आनंद प्रदान करते हैं।

    वाराणसीनाथ मनानाथ नाथं,
    हे वाराणसी के स्वामी, हे मन के स्वामी, हे प्रभु,

    श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥
    मैं श्री विश्वनाथ की शरण में आता हूँ।



    पद्य २:

    हे काशीपति विश्वनाथ, करो कृपा दिननाथ।
    हे काशी के स्वामी विश्वनाथ, हे दिनों के स्वामी, मुझ पर कृपा करो।

    पाप हरो, ताप हरो, भवसागर से तारो नाथ ॥
    मेरे पापों को दूर करो, मेरे दुखों को हरो, और इस संसार रूपी सागर से मुझे पार करो।



    पद्य ३:

    गंगा तट विराजित शम्भो,
    हे शंभो (शिव), आप गंगा के तट पर विराजमान हैं।

    दिव्य त्रिपुरारि हे नमो नमः।
    हे त्रिपुरारी (त्रिपुरासुर के विनाशक), मैं आपको बार-बार नमन करता हूँ।

    अविनाशी कृपालु सदाशिव,
    हे अविनाशी, कृपालु और सदाशिव,

    हे हर हर महादेव नमः ॥
    हे हर हर महादेव, मैं आपको नमन करता हूँ।


    यह भजन भक्ति और समर्पण की गहरी भावना को दर्शाता है। इसमें भगवान शिव की महिमा और उनकी कृपा पाने की प्रार्थना की गई है।

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