Header Ads

  • Breaking News

    महाभारत और गीता में क्या अंतर है यह ज्ञान हर मनुष्य को होना चाहिए ?

    महाभारत और गीता में क्या अंतर है यह ज्ञान हर मनुष्य को होना चाहिए








    We News 24 Hindi / दीपक कुमार 


    पंचांग पुराण :- नमस्कार दोस्तों, मैं दीपक कुमार हूं और आप देख रहे हैं वी न्यूज 24। आज हम इस लेख के माध्यम से महाभारत और गीता के बीच के प्रमुख अंतरों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। यह लेख न केवल इन दोनों ग्रंथों के मकसद और संदेश को समझने में मदद करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि कैसे ये ग्रंथ आज भी हमारे दैनिक जीवन और मानसिकता को प्रभावित करते हैं।  

    आइये ज्ञानवर्धक यात्रा का हिस्सा बनें। तो अब चलते है अपने मुख्य विषय पर  और इसे विस्तार से समझते हैं इन दोनों ग्रन्थ को ।

    महाभारत एक विशाल ग्रंथ है, जिसमें धर्म, नैतिकता, और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। वहीं, भगवद गीता उस ग्रंथ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के समय जीवन की सच्चाइयों और कर्तव्यों के बारे में उपदेश दिया है। महाभारत की कहानी केवल कुरुक्षेत्र के युद्ध की कथा नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के कई आयामों को छूती है। इसमें प्रेम, प्रतिशोध, विश्वासघात, और राजनीति जैसे जटिल विषयों का उल्लेख है। इसके विपरीत, गीता साधारण से दार्शनिक संवाद के रूप में प्रस्तुत की गई है, जो आत्मा, कर्म, और मोक्ष से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है।

    महाभारत एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है, जो न केवल एक कथा है बल्कि जीवन, धर्म, नैतिकता, राजनीति और दर्शन का एक विशाल संग्रह है। यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। महाभारत एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है, जिसे विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य भी माना जाता है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। महाभारत केवल एक युद्धकथा नहीं है, बल्कि यह जीवन, धर्म, नीति, दर्शन और राजनीति का अद्भुत समन्वय है। इसमें एक लाख  से भी अधिक श्लोक हैं, जो 18 पर्वों (खंडों) में विभाजित हैं।


    ये भी पढ़े-श्रीरामचरितमानस हमें धर्म के मार्ग पर चलने और नैतिक मूल्यों को अपनाने की शिक्षा देता है


    महाभारत की पृष्ठभूमि:

    महाभारत की कथा कुरु वंश के दो राजकुलों, कौरव और पांडव, के बीच के संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसकी परिणति कुरुक्षेत्र के महान युद्ध में होती है। यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष का प्रतीक है।


    मुख्य पात्र:

    1. श्रीकृष्ण – विष्णु के अवतार, जिन्होंने पांडवों का मार्गदर्शन किया और गीता का उपदेश दिया।
    2. युधिष्ठिर – पांडवों के ज्येष्ठ भाई, धर्मराज के प्रतीक।
    3. भीम – बलशाली पांडव, वायु पुत्र।
    4. अर्जुन – महान धनुर्धर, जिन्होंने गीता का उपदेश प्राप्त किया।
    5. दुर्योधन – कौरवों का प्रमुख, महत्त्वाकांक्षी और अधर्म का प्रतीक।
    6. कर्ण – सूर्य पुत्र, महान योद्धा और दानवीर।
    7. द्रौपदी – पांडवों की पत्नी, जो स्त्री सम्मान और दृढ़ता का प्रतीक हैं।


    महाभारत की प्रमुख कहानियां:

    1. कौरव और पांडवों का बचपन – हस्तिनापुर में दोनों भाइयों की शिक्षा-दीक्षा।
    2. लाक्षागृह का षड्यंत्र – दुर्योधन द्वारा पांडवों को जलाकर मारने की योजना।
    3. द्रौपदी स्वयंवर – अर्जुन द्वारा मछली की आंख भेदकर द्रौपदी को पत्नी बनाना।
    4. जुए का खेल – शकुनि की चाल से पांडवों की हार और द्रौपदी का अपमान।
    5. वनवास और अज्ञातवास – पांडवों का 13 वर्षों का वनवास।
    6. कुरुक्षेत्र युद्ध – धर्म और अधर्म की अंतिम लड़ाई।
    7. श्रीमद्भगवद्गीता – युद्ध के दौरान अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया दिव्य उपदेश।


    ये भी पढ़े-श्री विश्वनाथं शरणं प्रपद्ये :काशी में बाबा विश्वनाथ के दरबार में जाएं और यह श्लोक न दोहराएं तो आपकी यात्रा व्यर्थ है


    महाभारत का महत्व:

    महाभारत न केवल एक कथा है, बल्कि यह जीवन के सभी पहलुओं – धर्म, नैतिकता, कर्तव्य, राजनीति, मानव संबंधों और मनोविज्ञान – को गहराई से समझाने वाला ग्रंथ है। इसमें यह संदेश दिया गया है कि धर्म का पालन और सत्य की राह पर चलना मनुष्य का परम कर्तव्य है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।


    श्रीमद्भगवद्गीता: महाभारत का हृदय:

    महाभारत के भीष्म पर्व में सम्मिलित श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रंथ है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और भक्ति के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान कराया। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

    महाभारत के जीवन पाठ:

    1. धर्म और अधर्म का संघर्ष जीवन का हिस्सा है।
    2. कर्तव्यनिष्ठा और सत्यनिष्ठा सबसे बड़ा धर्म है।
    3. अहंकार और लोभ का अंत विनाश है।
    4. क्षमा, दान, भक्ति और परोपकार से जीवन सार्थक बनता है।
    5. राजनीति और कूटनीति जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक है।


    ये भी पढ़े-जातिगत भेदभाव, ऊंच-नीच की प्रथाओं और धार्मिक पाखंड का विरोध किया महान संत रविदास


    वर्तमान में महाभारत:

    आज भी महाभारत के पात्र और उनकी कहानियां भारतीय संस्कृति, साहित्य, कला और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा हैं। टेलीविजन, सिनेमा, रंगमंच और पुस्तकों के माध्यम से महाभारत की शिक्षाएं हर पीढ़ी तक पहुंच रही हैं।


    1. महाभारत हमें क्या सिखाता है?

    महाभारत मानव जीवन के लिए गहन शिक्षाएं और सीख प्रदान करता है। इसके मुख्य संदेश और शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:

    • धर्म और नैतिकता: महाभारत धर्म (न्याय) और अधर्म (अन्याय) के बीच संघर्ष की कहानी है। यह सिखाता है कि धर्म का पालन करना चाहिए, भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

    • कर्म का महत्व: महाभारत कर्म के सिद्धांत पर जोर देता है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया, जो बताता है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, बिना फल की इच्छा के।

    • अहंकार का परिणाम: दुर्योधन का अहंकार और लालच महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना। यह सिखाता है कि अहंकार और लालच विनाश का कारण बनते हैं।

    • पारिवारिक मूल्य: महाभारत में पारिवारिक संबंधों, कर्तव्य और प्रेम का गहरा चित्रण है। यह सिखाता है कि परिवार में एकता और समझदारी आवश्यक है।

    • न्याय और सत्य: यह ग्रंथ सिखाता है कि सत्य और न्याय की रक्षा करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

    • जीवन का उद्देश्य: महाभारत जीवन के उद्देश्य, मोक्ष और आत्मज्ञान के बारे में गहन ज्ञान प्रदान करता है।



    2. महाभारत की रचना किसने की?

    महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। वेदव्यास को इस महाकाव्य का लेखक और संकलनकर्ता माना जाता है। उन्होंने इसकी कथा को अपने शिष्य भगवान गणेश को सुनाया, जिन्होंने इसे लिपिबद्ध किया।
    महाभारत को "पंचम वेद" भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें जीवन के सभी पहलुओं का विस्तृत वर्णन है।

    3. महाभारत और गीता में क्या अंतर है?


    महाभारत
    भगवद् गीता
    महाभारत एक विशाल महाकाव्य है, जिसमें 1,00,000 श्लोक हैं।गीता महाभारत का एक छोटा हिस्सा है, जिसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।

    यह कुरुक्षेत्र युद्ध, कौरवों और पांडवों की कथा है।गीता युद्ध के मैदान में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है।
    इसमें जीवन के सभी पहलुओं (राजनीति, धर्म, नैतिकता आदि) का वर्णन है।गीता मुख्य रूप से कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की शिक्षा देती है।
    महाभारत में कई पात्र और घटनाएं हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं।गीता में केवल कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद है, जो आत्मज्ञान और कर्तव्य पर केंद्रित है।
    यह एक ऐतिहासिक और पौराणिक कथा है।गीता एक दार्शनिक ग्रंथ है, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है।


    4. महाभारत और गीता का महत्व

    • महाभारत: यह मानव जीवन के सभी पहलुओं को समझने का एक विशाल स्रोत है। इसमें राजनीति, धर्म, नैतिकता, प्रेम, युद्ध और जीवन के उद्देश्य का गहन विवेचन है।

    • भगवद् गीता: गीता एक आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो मनुष्य को जीवन के संघर्षों में धैर्य, कर्तव्य और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाती है। यह कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की शिक्षा देती है।

    • गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया एक आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश है, जो महाभारत के भीष्म पर्व में वर्णित है। गीता मुख्य रूप से कर्मयोगभक्तियोग और ज्ञानयोग की शिक्षा देते हैं। गीता का उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक मार्गदर्शक है।


      गीता के मुख्य उपदेश:

      1. कर्मयोग यानि कर्म का सिद्धांत:

        • भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य (कर्म) का पालन करना चाहिए, बिना फल की इच्छा के।

        • भगवत गीता अध्याय 2 और श्लोक 47 –: "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"
          (तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं।)

        • यह सिखाता है कि कर्म करो, लेकिन परिणाम की चिंता मत करो।

      2. आत्मा की अमरता:

        • गीता में बताया गया है कि आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा सदैव रहती है।

        • भगवत गीता अध्याय 2 और श्लोक 20 –:"न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।"
          (आत्मा न तो कभी जन्म लेती है और न मरती है, न ही यह कभी अस्तित्व में आई है और न आएगी।)

      3. भक्तियोग (भगवान की भक्ति):

        • कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि भक्ति के माध्यम से मनुष्य भगवान से जुड़ सकता है।

        • भगवत गीता अध्याय श्लोक 22: "अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।"

        • (जो लोग मुझे एकमात्र शरण के रूप में चिंतन करते हैं, मैं उनकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखता हूं।)

      4. ज्ञानयोग (ज्ञान का मार्ग):

        • गीता ज्ञान के महत्व पर जोर देती है। अज्ञानता के कारण ही मनुष्य दुख और भ्रम में फंसता है।

        • भगवत गीता अध्याय  4 श्लोक 38: "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।"

        • (इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है।)

      5. समत्व (समभाव):

        • गीता सिखाती है कि सुख-दुख, जीत-हार, लाभ-हानि में समान भाव रखना चाहिए।

        • भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 14: "मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।"
          (सुख-दुख, ठंड-गर्मी के संपर्क अनित्य हैं, इन्हें सहन करना सीखो।)

      6. धैर्य और संयम:

        • गीता धैर्य और संयम का पाठ पढ़ाती है। अर्जुन को युद्ध के मैदान में भी धैर्य रखने की सलाह दी गई।

        • भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 60: "यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः। इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः।"
          (इंद्रियों के वश में होकर मनुष्य का मन भटक जाता है, इसलिए इंद्रियों को वश में रखो।)

      7. स्वधर्म का पालन:

        • गीता में स्वधर्म (अपना कर्तव्य) का पालन करने पर जोर दिया गया है। हर व्यक्ति का कर्तव्य अलग होता है।

        • भगवत गीता अध्याय 3 श्लोक 35: "श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।"

        • (अपना धर्म, भले ही दोषपूर्ण हो, दूसरे के धर्म से बेहतर है।)

      8. मोक्ष की प्राप्ति:

        • गीता मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग दिखाती है। यह बताती है कि आत्मज्ञान और भक्ति के माध्यम से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

        • भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 66: "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।"
          (सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।)


      गीता का सार:

      • कर्म करो, फल की इच्छा मत करो।

      • आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है।

      • भक्ति, ज्ञान और कर्म के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करो।

      • सुख-दुख, जीत-हार में समान भाव रखो।

      • अपने कर्तव्य (स्वधर्म) का पालन करो।



    ये भी पढ़े-नहीं करे पशुपतिनाथ से पहले नंदी का दर्शन ,जाने बाबा पशुपतिनाथ जुड़ी जानकारी



    महाभारत और गीता दोनों ही मानव जीवन के लिए अमूल्य शिक्षाएं प्रदान करते हैं। महाभारत जीवन के व्यापक पहलुओं को समझाता है, जबकि गीता आत्मज्ञान और कर्तव्य का मार्ग दिखाती है। दोनों ग्रंथ आज भी प्रासंगिक हैं और मनुष्य को जीवन के संघर्षों में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

    कोई टिप्पणी नहीं

    कोमेंट करनेके लिए धन्यवाद

    Post Top Ad

    ad728

    Post Bottom Ad