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    क्या हिंदी विरोध की राजनीति: एम.के. स्टालिन की सत्ता बचाने का नया हथकंडा ?

    • क्या हिंदी विरोध की राजनीति: एम.के. स्टालिन की सत्ता बचाने का नया हथकंडा ?







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    • तमिलनाडु में सत्ता विरोधी माहौल के चलते स्टालिन ने पुराने 'हिंदी विरोधी' हथियार को फिर से उठाया है। काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजनों से उनकी बेचैनी बढ़ी है,






    We News 24 Hindi / दीपक कुमार 



    तमिलनाडु:- के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के हिंदी विरोधी बयानों ने एक बार फिर भाषाई विवाद को हवा दे दी है। उनका कहना है कि हिंदी ने भारत की कई क्षेत्रीय भाषाओं को निगल लिया है और यह भाषाई विविधता के लिए खतरा है। हालांकि, यह दावा पूरी तरह से सही नहीं है। हिंदी भारत की एक प्रमुख भाषा है, लेकिन यह अन्य भाषाओं को खत्म करने का कारण नहीं है। हिंदी और उसकी बोलियों के बीच एक समृद्ध सह-अस्तित्व का संबंध है।


    हिंदी क्षेत्र की विभिन्न बोलियाँ जैसे भोजपुरी, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही आदि हिंदी की समृद्धि में योगदान देती हैं। ये बोलियाँ हिंदी को जीवंत और गतिशील बनाती हैं। हिंदी समाज अपनी जनपदीय भाषाओं को भी बोलता है और हिंदी को भी। यह भाषाई विविधता हिंदी की ताकत है, न कि कमजोरी।


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    क्या स्टालिन अंग्रेजी का रास्ता साफ कर रहे हैं?

    स्टालिन का यह बयान भारतीय भाषाओं के बीच विभाजन पैदा करने का प्रयास लगता है। उनका यह दावा कि हिंदी ने अन्य भाषाओं को नुकसान पहुंचाया है, वास्तविकता से परे है। भारत में भाषाई विविधता एक समृद्ध परंपरा है और हिंदी इस परंपरा का हिस्सा है। हिंदी का विस्तार और स्वीकार्यता बढ़ रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह अन्य भाषाओं को कमजोर कर रही है।इसके पहले स्टालिन ने संस्कृत का भी बेतुका विरोध किया था। इसी तरह वह यह दुष्प्रचार भी कर रहे हैं कि त्रिभाषा फार्मूला दरअसल हिंदी थोपने की कोशिश है।क्या ऐसे बयान देकर स्टालिन भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ाने और अंग्रेजी को आधिपत्य जमाए रखने का अवसर नहीं दे रहे हैं? स्टालिन को यह बोध होना चाहिए कि भारतीय भाषाओं को खतरा अंग्रेजी से है। हिंदी का तमिल या किसी भारतीय भाषा से कोई झगड़ा नहीं है । 


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    तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति का इतिहास रहा है। वर्ष 1965 में हिंदी को राजभाषा बनाने के विरोध में तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन हुए थे। इसके बाद से हिंदी विरोध की राजनीति वहां चलती रही है। हालांकि, यह दृष्टिकोण भारत की भाषाई एकता के लिए हानिकारक है। भारत में सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए और उन्हें एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में रहना चाहिए।


    भारतीय भाषाओं के बीच सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है। हिंदी और तमिल दोनों ही भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। इन भाषाओं के बीच टकराव की बजाय सहयोग होना चाहिए। भारत की भाषाई विविधता उसकी ताकत है और इसे बनाए रखने के लिए सभी भाषाओं को समान महत्व देना चाहिए।

     


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    हिंदी बनाम बोलियां: एक निरर्थक बहस

    हिंदी पर लगाया गया यह आरोप निराधार है क्योंकि हिंदी स्वयं विभिन्न बोलियों से बनी है और इनकी समृद्धि से ही हिंदी फलती-फूलती है। हिंदी समाज अपने क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हिंदी का भी उपयोग करता है, जिससे दोनों को बढ़ावा मिलता है।


    संस्कृति से जुड़े भारत को बांटने की राजनीति?

    स्टालिन की यह बयानबाजी केवल भाषाई विभाजन को बढ़ावा देने की कोशिश है। जब हिंदी की स्वीकार्यता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही है, तब ऐसे बयान केवल समाज में फूट डालने का काम करते हैं।

    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
    चक्रवर्ती राजगोपालाचारी


    तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास

    तमिलनाडु में भाषा को राजनीतिक हथियार बनाना नया नहीं है। 1965 में हिंदी को राजभाषा घोषित करने का विरोध हिंसक आंदोलन में बदल गया था।तमिलभाषी क्षेत्र में भाषा को राजनीति का हथियार बनाने का प्रयोग दशकों पुराना है। इस आंदोलन की जड़ें 1937 में मद्रास सरकार के प्रमुख के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने हाईस्कूल स्तर पर हिंदी को अनिवार्य विषय बना दिया तो उसके खिलाफ उग्र आंदोलन शुरू हो गया था। 

      

    सुब्रह्मण्य भारती
    सुब्रह्मण्य भारती


    सुब्रह्मण्य भारती और हिंदी

    तमिल के महान कवि सुब्रह्मण्य भारती हिंदी के प्रबल समर्थक थे। वह तमिल समाचार पत्र ‘इंडिया’ के संपादक थे और उसमें वह एक पृष्ठ हिंदी को देते थे। ‘इंडिया’ के 15 दिसंबर, 1906 के अंक में उन्होंने लिखा था, ‘तीस करोड़ लोगों में से आठ करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। महाराष्ट्र से लेकर बंगाल के लोग हिंदी आसानी से समझ लेते हैं। तमिलभाषी, तेलुगुभाषी थोड़ा सा परिश्रम करेंगे तो हिंदी सीख सकते हैं।’ उनकी इस सोच को केंद्र सरकार ने सम्मान देते हुए केंद्र सरकार 2022 से सुब्रह्मण्य भारती के जन्मदिन 11 दिसंबर को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाती है।


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    हिंदी विरोध



    हिंदी विरोध: सत्ता बचाने का हथकंडा?

    तमिलनाडु में सत्ता विरोधी माहौल के चलते स्टालिन ने पुराने 'हिंदी विरोधी' हथियार को फिर से उठाया है। काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजनों से उनकी बेचैनी बढ़ी है, और यह बयानबाजी उसी की प्रतिक्रिया मानी जा सकती है।


    हिंदी बनाम अंग्रेजी: असली खतरा कहां से है?

    हिंदी पर आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि भारतीय भाषाओं के अस्तित्व को सबसे बड़ा खतरा अंग्रेजी से है, न कि हिंदी से। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं एक-दूसरे की पूरक रही हैं, जबकि अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव वास्तव में सभी भारतीय भाषाओं के लिए नुकसानदायक है।

    काशी-तमिल संगमम



    क्या स्टालिन राजनीतिक लाभ के लिए हिंदी विरोध कर रहे हैं?

    तमिलनाडु में सत्ता विरोधी माहौल के चलते स्टालिन ने पुराने 'हिंदी विरोधी' हथियार को फिर से उठा लिया है। काशी-तमिल संगमम जैसे आयोजनों से उनकी बेचैनी बढ़ी है, और इस तरह के भड़काऊ बयान उसी की प्रतिक्रिया माने जा सकते हैं।

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