क्या आप जानते हैं कि महाभारत युद्ध में एक ऐसा योद्धा भी था, जो अकेले ही पूरी सेना को पल भर में पराजित कर सकता था?"
"जिसने भगवान शिव और श्रीकृष्ण से अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त की थीं?"
"जिसका सिर युद्ध भूमि से अलग होकर भी महाभारत के पूरे युद्ध को देखता रहा?"
We News 24 Hindi / एडिट बाय दीपक कुमार
हरियाणा :- इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और इसे कलयुग के सर्वोत्तम तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। श्रद्धालु इसे चुलकाना धाम के नाम से जानते हैं। चुलकाना धाम, हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर स्थित चुलकाना गांव में बाबा श्याम का एक प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थल है जिसे कलयुग का सर्वोत्तम तीर्थ माना जाता है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण और उनके भक्त बर्बरीक (खाटू श्याम) की अद्भुत कथा से जुड़ा है, जहाँ श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान माँगा था।
बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव युद्ध में विजयी नहीं होंगे। अतः उन्होंने अपने पुत्र से वचन लिया कि वह युद्ध में हारे हुए पक्ष का साथ देगा। मातृभक्त बर्बरीक ने यह वचन स्वीकार कर लिया और युद्ध क्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे उन्हें "लीला का असवार" भी कहा जाता है।
जब बर्बरीक युद्ध भूमि के निकट पहुंचे, तब तक पांडवों का पलड़ा भारी हो चुका था। ऐसे में, अपने वचन के अनुसार, बर्बरीक को कौरवों का पक्ष लेना पड़ता। यदि वह कौरवों का समर्थन करते, तो युद्ध का परिणाम बदल सकता था। इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने एक लीला रची।
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चुलकाना धाम में श्रीकृष्ण की परीक्षा
श्रीकृष्ण, जो पांडवों के मार्गदर्शक थे, ने बर्बरीक की शक्ति और उनकी प्रतिज्ञा के परिणामों को समझा। उन्होंने एक ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के सामने प्रकट होकर उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे युद्ध में क्या करने जा रहे हैं। बर्बरीक ने अपनी योजना और शक्ति के बारे में बताया।
तब श्रीकृष्ण ने उन्हें चुनौती दी कि वे एक पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को अपने बाण से भेद दें। बर्बरीक ने यह चुनौती स्वीकार की और अपने एक बाण से सभी पत्तों को भेद दिया। लेकिन श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा रखा था, और बाण वहां भी पहुंच गया, जिससे उनकी दिव्यता का पता चला।
तो ब्राह्मण रूपी श्रीकृष्ण ने उनसे दान में कुछ मांगने की इच्छा जताई। बर्बरीक ने विनम्रता से कहा कि उनके पास देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन अगर ब्राह्मण की दृष्टि में कुछ है, तो वह देने को तैयार हैं।
इस पर श्रीकृष्ण ने उनके शीश का दान मांगा। यह सुनकर बर्बरीक ने तुरंत पहचान लिया कि साधारण ब्राह्मण ऐसा दान नहीं मांग सकता और उन्होंने श्रीकृष्ण से उनका वास्तविक स्वरूप प्रकट करने को कहा। श्रीकृष्ण ने जब स्वयं को प्रकट किया, तब बर्बरीक ने शीशदान देने की स्वीकृति दी।
बर्बरीक का बलिदान और अमरता का वरदान
बर्बरीक ने शीशदान से पहले श्रीकृष्ण से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। श्रीकृष्ण ने समझाया कि युद्ध की सफलता के लिए एक महान योद्धा का बलिदान आवश्यक था। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर तीन महाबली हैं - स्वयं श्रीकृष्ण, अर्जुन, और बर्बरीक। चूंकि बर्बरीक पांडव कुल से थे, इसलिए उनका बलिदान सबसे महत्वपूर्ण था।
बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। रातभर बर्बरीक ने अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा अर्चना की और फाल्गुन माह की द्वादशी को स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा अर्चना करने के पश्चात् उन्होंने अपने शीश का दान दिया। उनका सिर श्रीकृष्ण ने अमृत से सींच कर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया, जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्रीकृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान कार्य किया है। उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी।
उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था। यह सुनकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वर दिया और कहा कि तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे खाटू नामक ग्राम में प्रकट होने के कारण खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्धि पाओगे और मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में स्थापित होंगी और तुम मेरे ही प्रतिरूप बनकर पूजे जाओगे। उन्होंने यह आशीर्वाद दिया कि कलयुग में बर्बरीक को श्याम बाबा के रूप में पूजा जाएगा और वे "हारे के सहारा" बनकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे।
चमत्कारी पीपल का वृक्ष
चुलकाना धाम में एक विशेष पीपल का वृक्ष स्थित है, जिसके प्रत्येक पत्ते में छेद हैं। माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की शक्ति की परीक्षा लेने के लिए उन्हें पीपल के पत्तों में छेद करने के लिए कहा था। श्रीकृष्ण ने एक पत्ते को अपने पैर के नीचे छुपा लिया, लेकिन बर्बरीक के बाण ने श्रीकृष्ण के पैर के नीचे दबे पत्ते में भी छेद कर दिया। तभी से इस पीपल के पेड़ के हर पत्ते में छेद दिखाई देते हैं। भक्तगण इस पेड़ की परिक्रमा कर मन्नत मांगते हैं और धागा बांधते हैं, जिससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
चुलकाना धाम की धार्मिक मान्यता
चुलकाना धाम आज एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल बन चुका है। यहां हर रविवार, एकादशी और द्वादशी को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां हनुमान जी, भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। श्री श्याम मंदिर सेवा समिति के अनुसार, देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।
चुलकाना धाम केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि महाभारत काल की अमर गाथा का जीवंत प्रमाण है। बर्बरीक का बलिदान, श्रीकृष्ण की लीला और इस पवित्र धाम की दिव्यता इसे भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र बनाती है। बाबा श्याम को "हारे का सहारा" मानकर जो भी श्रद्धालु यहां सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।यह धाम भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है, जहाँ श्रीकृष्ण और बर्बरीक की अमर कथा आज भी जीवित है।
चुलकाना धाम और खाटू श्याम जी में क्या अंतर है?
बाबा श्याम (बर्बरीक) की पूजा भारत में दो प्रमुख स्थानों पर होती है – चुलकाना धाम (हरियाणा) और खाटू श्याम जी (राजस्थान)। हालांकि दोनों स्थान बर्बरीक से जुड़े हैं, लेकिन इनके इतिहास, धार्मिक मान्यता और भक्ति परंपराओं में कुछ अंतर हैं। आइए विस्तार से जानते हैं।
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चुलकाना धाम को बाबा श्याम का प्रथम स्थल माना जाता है, जहाँ उन्होंने श्रीकृष्ण को अपना शीशदान दिया था।
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पीपल का चमत्कारी वृक्ष: यहाँ का एक पीपल का पेड़ खास है, जिसके हर पत्ते में छेद हैं। मान्यता है कि यह वही पेड़ है जिसके नीचे श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा ली थी।
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श्रद्धालुओं की मान्यता: भक्तगण यहाँ आकर मन्नत मांगते हैं और पीपल के पेड़ की परिक्रमा करते हैं।
🔹 विशेष मान्यता:
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यह स्थान वह जगह मानी जाती है जहाँ बर्बरीक का शीश रखा गया और उन्होंने युद्ध देखा।
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यहाँ बाबा श्याम को "लीला का असवार" भी कहा जाता है।
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यह स्थान पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत से सीधे जुड़ा हुआ है।
🚩 भक्त यहाँ क्यों आते हैं?
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मन्नतें माँगने के लिए
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पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने के लिए
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बाबा श्याम के दर्शन और आशीर्वाद पाने के लिए
खाटू श्याम जी (सीकर, राजस्थान)
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श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि वे कलयुग में "श्याम" नाम से पूजे जाएंगे।
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बर्बरीक के कटे हुए शीश को श्रीकृष्ण ने राजस्थान के खाटू गांव में स्थापित करने की आज्ञा दी।
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वर्षों बाद, वहाँ खुदाई में बर्बरीक का दिव्य शीश प्राप्त हुआ और इसे खाटू श्याम मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
🔹 विशेष मान्यता:
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खाटू श्याम को "हारे का सहारा" कहा जाता है, यानी जो भी हारा हुआ व्यक्ति बाबा श्याम के शरण में आता है, उसकी रक्षा होती है।
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यहाँ फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष द्वादशी को विशाल खाटू श्याम मेला लगता है, जिसमें लाखों भक्त आते हैं।
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बाबा श्याम के दरबार में निशान (झंडा) चढ़ाने की परंपरा है।
🚩 भक्त यहाँ क्यों आते हैं?
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बाबा श्याम के विशाल मंदिर में दर्शन करने
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अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए
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खाटू श्याम मेले में शामिल होने के लिए
निष्कर्ष
दोनों ही स्थानों का महत्व अपनी जगह है, और दोनों ही तीर्थ बाबा श्याम के अद्भुत चमत्कारों से जुड़े हुए हैं।
🙏 "जय श्री श्याम! हारे का सहारा बाबा श्याम!" 🚩
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"अगर आप भी बाबा श्याम के सच्चे भक्त हैं, तो कमेंट में लिखें – 'जय श्री श्याम!'"
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