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    पुलिस सुधार और मानवीय अधिकार: न काम के घंटे तय नाही सप्ताहिक अवकाश ,कब बदलेगी व्यवस्था?

    लिस सुधार और मानवीय अधिकार: न कामके घंटे तय नाही सप्ताहिक अवकाश ,कब बदलेगी व्यवस्था?


    हाइलाइट्स:

    • पुलिसकर्मियों के लिए काम के घंटे और साप्ताहिक अवकाश तय करने पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई।
    • धर्मवीर आयोग सहित कई समितियों की सिफारिशें अब तक कागजों में ही सीमित।
    • सुप्रीम कोर्ट के 2006 के पुलिस सुधार निर्देशों पर अमल नहीं।
    • अन्य देशों में पुलिसकर्मियों के काम के घंटे और छुट्टियों की व्यवस्थित प्रणाली।
    • पुलिस को अपराध जांच, कानून व्यवस्था, वीआईपी ड्यूटी और अदालतों से जुड़े कई कार्य करने पड़ते हैं।






    We News 24 Hindi /  दीपक कुमार 



    नई दिल्ली :- देश में सभी नागरिक भयमुक्त और सुरक्षित जीवन जी सकें, इसमें पुलिस व्यवस्था की अहम भूमिका होती है। पुलिस 365 दिन और 24 घंटे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्पर रहती है, लेकिन मौजूदा व्यवस्था में पुलिसकर्मी इंसान नहीं, बल्कि मशीन की तरह काम करते हैं। उनके काम के घंटे तय नहीं हैं, और अवकाश भी उच्च अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है।


    पुलिसकर्मियों के कामकाजी घंटे और उनकी कार्यशैली को लेकर भारत में लंबे समय से चर्चा होती रही है। पुलिसकर्मियों को अक्सर लंबे समय तक काम करना पड़ता है, जिससे उनके स्वास्थ्य और जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आजादी के बाद से पुलिस सुधारों की मांग उठती रही है। 1996 में प्रकाश सिंह ने पुलिस सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन अब तक जमीन पर कोई ठोस बदलाव नहीं दिखा है।यह मुद्दा अब सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है, जहां पुलिसकर्मियों के काम के घंटे तय करने और साप्ताहिक अवकाश सुनिश्चित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हो रही है। इसके साथ ही, पुलिस सुधारों को लेकर भी कई सिफारिशें की गई हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं किया गया है। आइए, इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करते हैं।


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    पुलिस की जिम्मेदारियां

    अपराध की जांच

    कानून व्यवस्था बनाए रखना

    गुप्त सूचनाएं इकट्ठा करना

    वीआईपी ड्यूटी

    अदालतों से जुड़े कार्य


    पुलिसकर्मियों की वर्तमान स्थिति

    लंबे काम के घंटे:

    पुलिसकर्मियों के काम के घंटे तय नहीं हैं। उन्हें अक्सर 12-14 घंटे या उससे अधिक समय तक काम करना पड़ता है। त्योहारों, विशेष आयोजनों और वीआईपी ड्यूटी के दौरान उनकी ड्यूटी और भी लंबी हो जाती है।


    अवकाश की कमी:

    पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता है। उनकी छुट्टियां उच्च अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करती हैं।



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    स्वास्थ्य और मानसिक तनाव:

    लंबे समय तक काम करने और अवकाश की कमी के कारण पुलिसकर्मियों में तनाव, थकान और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आम हैं।


    पुलिस सुधारों की मांग

    धर्मवीर आयोग (1977):

    पुलिस सुधारों को लेकर सबसे पहले 1977 में धर्मवीर आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं, जिनमें शामिल हैं:


    हर राज्य में एक प्रदेश सुरक्षा आयोग का गठन।


    जांच कार्यों को शांति व्यवस्था संबंधी कामकाज से अलग करना।


    पुलिस प्रमुख की नियुक्ति के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाना।


    एक नया पुलिस अधिनियम बनाना।


    सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश (2006):

    2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस सुधारों को लेकर सात निर्देश जारी किए, जिनमें शामिल हैं:


    राज्य सुरक्षा आयोग का गठन।


    पुलिस कंप्लेंट अथॉरिटी का गठन।


    पुलिस प्रमुख का कार्यकाल तय करना।


    अपराध की जांच और कानून व्यवस्था के लिए अलग पुलिस व्यवस्था।




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    अन्य समितियों की सिफारिशें:


    पद्मनाभैया समिति (2000) ने पुलिस के पुनर्गठन पर सिफारिशें कीं।


    मलीमठ समिति (2002-03) ने आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों पर सुझाव दिए।


    जूलियो रिबेरो समिति (1998) ने पुलिस सुधारों को लागू करने के तरीके सुझाए।


    अन्य देशों में पुलिसकर्मियों की स्थिति

    ब्रिटेन:


    पुलिसकर्मी सप्ताह में 40 घंटे काम करते हैं।


    सालाना 22 दिन की न्यूनतम छुट्टी।


    सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का प्रावधान।


    अमेरिका:


    न्यूयॉर्क पुलिस 8 घंटे 35 मिनट की शिफ्ट में काम करती है।


    सिएटल पुलिस 9 घंटे की शिफ्ट में काम करती है।


    5 दिन काम के बाद 2 दिन की छुट्टी।


    कनाडा:


    दिन और शाम की शिफ्ट 10 घंटे की होती है, जबकि रात की शिफ्ट 8.5 घंटे की।


    लंबी शिफ्ट के बाद पुलिसकर्मियों को रेस्ट डे मिलता है।


    ऑस्ट्रेलिया:


    2009 तक 12 घंटे की शिफ्ट का सिस्टम था, जिसे अब 8 घंटे की शिफ्ट में बदल दिया गया है।


    भारत में पुलिस सुधारों की चुनौतियां

    राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी:

    पुलिस सुधारों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। राज्य सरकारें अक्सर पुलिस को अपने नियंत्रण में रखना चाहती हैं।




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    संसाधनों की कमी:

    पुलिस विभाग में संसाधनों की कमी है, जिसके कारण पुलिसकर्मियों पर काम का बोझ बढ़ जाता है।


    पुरानी व्यवस्था:

    पुलिस व्यवस्था अभी भी औपनिवेशिक काल के नियमों पर आधारित है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है।


    निष्कर्ष

    पुलिसकर्मियों के काम के घंटे तय करने और उन्हें साप्ताहिक अवकाश देने की मांग एक जरूरी कदम है। इससे न केवल पुलिसकर्मियों के स्वास्थ्य और जीवनशैली में सुधार होगा, बल्कि उनकी कार्यक्षमता भी बढ़ेगी। साथ ही, पुलिस सुधारों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधनों की आवश्यकता है। अन्य देशों के उदाहरणों से सीख लेकर भारत में भी पुलिस व्यवस्था को और अधिक मानवीय और कुशल बनाया जा सकता है। 

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