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सोमवार, 3 मार्च 2025

रमजान 2025: आज दूसरा रोजा बरकत और नेमतों का दौर, जानें इसका महत्व और सच्चे रोजे के नियम

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हाईलाइट्स:

  • 2 मार्च 2025 से शुरू हुआ रमजान – रोजेदारों ने 3 मार्च को दूसरा रोजा रखा।
  • रमजान के तीन अशरे:
  • पहला अशरा (रहमत) – 1 से 10 रोजे, अल्लाह की रहमत पाने का समय।
  • दूसरा अशरा (बरकत) – 11 से 20 रोजे, बरकत और नेमतों का दौर।
  • तीसरा अशरा (मगफिरत) – 21 से 30 रोजे, गुनाहों की माफी का वक्त।
  • सच्चे रोजे के लिए जरूरी है खुद पर नियंत्रण – झूठ, बुरा व्यवहार और लालच से बचना जरूरी।
  • रोजे का असली मकसद – इच्छाओं और गुस्से पर काबू पाना, सच्चे ईमान की परीक्षा।
  • दूसरे रोजे को ‘शफाअत और इनाम’ कहा जाता है – यह धैर्य और संयम की सीख देता है।
  • रोजे के दौरान गलत आदतों से बचें – झूठ, अपशब्द, लालच, बुरी नजर और गलत कर्म से दूर रहें।






We News 24 Hindi / रईस अहमद 


नई दिल्ली :- रमजान का पवित्र महीना मुसलमानों के लिए विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है। यह महीना इबादत, तपस्या और आत्म-नियंत्रण का होता है। रोजा रखना इस्लाम के पांच मूल स्तंभों में से एक है, जो हर सक्षम मुसलमान के लिए अनिवार्य है। रमजान के महीने में रोजेदार सूर्योदय से सूर्यास्त तक खाने-पीने और अन्य शारीरिक इच्छाओं से दूर रहते हैं। यह महीना आत्म-सुधार, दान-पुण्य और अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित होता है।



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रमजान के तीन अशरों का महत्व:


  1. पहला अशरा (1-10 रोजा) - रहमत (दया) का अशरा:

    • यह अशरा अल्लाह की रहमत और दया को प्राप्त करने का समय होता है। रोजेदार इस दौरान अल्लाह से माफी और दया की दुआ करते हैं।


  2. दूसरा अशरा (11-20 रोजा) - बरकत (आशीर्वाद) का अशरा:

  3. तीसरा अशरा (21-30 रोजा) - मगफिरत (माफी) का अशरा:

    • यह अशरा गुनाहों की माफी और नजात (मुक्ति) का समय होता है। रोजेदार इस दौरान अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और जन्नत (स्वर्ग) की कामना करते हैं।


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रोजे का सही अर्थ और महत्व:

रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। रोजे के दौरान निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:


  1. गुस्से पर काबू: रोजेदार को गुस्से और नकारात्मक भावनाओं पर काबू रखना चाहिए।

  2. ईमानदारी और सच्चाई: झूठ, धोखाधड़ी और बुरे कामों से दूर रहना चाहिए।

  3. दान-पुण्य: रमजान में जकात (दान) और सदका (दान) देना अत्यंत पुण्य का काम माना जाता है।

  4. इबादत: रोजेदार को नमाज, कुरआन पढ़ने और दुआ करने में अधिक समय बिताना चाहिए।



रोजे के नियम:

  • सहरी: रोजे की शुरुआत सहरी (सूर्योदय से पहले का भोजन) से होती है। सहरी में पौष्टिक और हल्का भोजन करना चाहिए।

  • इफ्तार: सूर्यास्त के बाद रोजा खोलने को इफ्तार कहा जाता है। इफ्तार में खजूर और पानी से रोजा खोलने की सुन्नत है।

  • नियत: रोजे की नियत (इरादा) करना जरूरी है। बिना नियत के रोजा मान्य नहीं होता।


रोजे का उद्देश्य:

रोजे का मुख्य उद्देश्य आत्म-नियंत्रण, आध्यात्मिक शुद्धि और अल्लाह की इबादत है। यह महीना मुसलमानों को अपने गुनाहों से तौबा करने और अल्लाह के करीब आने का अवसर प्रदान करता है।


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सलाह:

रमजान के पवित्र महीने में रोजेदारों को न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी तैयार रहना चाहिए। इस महीने में अधिक से अधिक नेक काम करने और दान-पुण्य करने का प्रयास करना चाहिए। रोजे के दौरान गुस्से, लालच और अन्य नकारात्मक भावनाओं पर काबू रखना चाहिए ताकि रोजे का सही अर्थ और महत्व समझा जा सके।

Disclaimer: यह जानकारी सामान्य ज्ञान और मान्यताओं पर आधारित है। किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक प्रश्न के लिए संबंधित विद्वान या विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित है। 

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