सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को असंवेदनशील करार देते हुए उस पर तुरंत रोक लगा दी।
खासकर पैराग्राफ 24, 25, और 26 को सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशीलता की कमी वाला बताया।
We News 24 Hindi /अंजली कुमारी
नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगाया सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक जज ने कहा था कि "स्तन को छूना या पजामे का नाड़ा खोलना बलात्कार या उसके प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।" शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को "असंवेदनशील" बताया जस्टिस भूषण आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 24, 25 और 26 में "संवेदनशीलता की कमी" दिखती है। कोर्ट ने कहा, "हमें एक न्यायाधीश द्वारा इस तरह के कठोर शब्दों के इस्तेमाल पर खेद है।"
यह मामला 17 मार्च को सामने आया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने 11 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने कहा था कि "महिला के शरीर के अंगों को छूना या कपड़े ढीले करना, बलात्कार या उसके प्रयास के तहत नहीं आता।"
इस टिप्पणी पर देशभर में आक्रोश फैला था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पुनः सुनवाई का आदेश दिया शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़िता की माँ ने भी एक याचिका दायर की है, जिसे इस मामले से जोड़कर फिर से सुनवाई की जाएगी। साथ ही, कोर्ट ने सुझाव दिया कि जिस जज ने यह टिप्पणी की थी, उन्हें संवेदनशील मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
कानूनी दृष्टिकोण: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 376 के तहत किसी भी प्रकार की यौन हिंसा को गंभीर अपराध माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि यौन उत्पीड़न को कमतर नहीं आंका जा सकता।
सामाजिक दृष्टिकोण: हाई कोर्ट का यह विवादास्पद फैसला लैंगिक संवेदनशीलता और पीड़ितों के अधिकारों को लेकर समाज में गलत संदेश दे सकता था। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस तरह के मामलों में एक सख्त नज़ीर स्थापित करता
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित फैसले पर सख्त रुख अपनाते हुए रोक लगाई, जिसमें यौन हिंसा को लेकर संकीर्ण व्याख्या की गई थी। कोर्ट ने इस फैसले को "असंवेदनशील" बताया और मामले की पुनः समीक्षा का आदेश दिया।
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