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रविवार, 30 मार्च 2025

दो कैलेंडर, दो दुनिया ! एक जीवन, दो रीतियाँ ! हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी नव वर्ष में इतना अंतर क्यों?


दो कैलेंडर, दो दुनिया ! एक जीवन, दो रीतियाँ ! हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी नव वर्ष में इतना अंतर क्यों?

 






We News 24 Hindi / एडिट बाय दीपक कुमार 



हिंदू नव वर्ष (विक्रम संवत) और अंग्रेजी कैलेंडर (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के नव वर्ष में अंतर का मूल कारण उनकी गणना पद्धति और सांस्कृतिक-खगोलीय आधार में छिपा है। हिंदू पंचांग के अनुसार 30 मार्च 2025 से नवसंवत्सर 2081 (विक्रम संवत) की शुरुआत हुई है। यह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है, जिसे हिंदू नववर्ष या गुड़ी पड़वा (महाराष्ट्र), उगादि (तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक), विशु (केरल), नवरेह (कश्मीर) और बिहू (असम) जैसे नामों से भी जाना जाता है। आइए, इसे समझते हैं:


दो कैलेंडर, दो दुनिया ! एक जीवन, दो रीतियाँ ! हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी नव वर्ष में इतना अंतर क्यों?



हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी नव वर्ष में अंतर इसलिए है क्योंकि दोनों अलग-अलग कैलेंडर सिस्टम पर आधारित हैं। हिंदू नव वर्ष चंद्र-सौर कैलेंडर (लूनी-सोलर कैलेंडर) पर आधारित होता है, जो चंद्रमा और सूर्य की गति को ध्यान में रखता है। यह आमतौर पर चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में मार्च या अप्रैल के आसपास पड़ता है। वहीं, अंग्रेजी नव वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है, जो केवल सौर गति पर निर्भर करता है और 1 जनवरी से शुरू होता है।

इन दोनों कैलेंडरों की गणना और उद्देश्य अलग-अलग हैं। हिंदू कैलेंडर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर वैश्विक मानक के रूप में इस्तेमाल होता है। इसीलिए इनमें समय का अंतर देखने को मिलता है।

दो कैलेंडर, दो दुनिया ! एक जीवन, दो रीतियाँ ! हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी नव वर्ष में इतना अंतर क्यों?


1. गणना का आधार अलग

अंग्रेजी नव वर्ष (1 जनवरी)


सौर कैलेंडर पर आधारित, जो पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा (365.24 दिन) को मानक मानता है।


इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर (1582 में पोप ग्रेगोरी XIII द्वारा सुधारित) के अनुसार मनाया जाता है।


यह एक सार्वभौमिक प्रशासनिक कैलेंडर है, जिसका उद्देश्य व्यापार, शासन और अंतर्राष्ट्रीय समन्वय को सरल बनाना था।


हिंदू नव वर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा)


चंद्र-सौर कैलेंडर पर आधारित, जो चंद्रमा की गति और सूर्य की स्थिति दोनों को ध्यान में रखता है।


विक्रम संवत (57 ईसा पूर्व) से शुरू होता है, जिसे राजा विक्रमादित्य ने प्रचलित किया था।


यह प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है।


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2. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

अंग्रेजी नव वर्ष


मुख्य रूप से सामाजिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।


इसका ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व कम है, बल्कि यह समय की नई शुरुआत का प्रतीक है।


हिंदू नव वर्ष


धार्मिक, खगोलीय और ऋतु आधारित महत्व:


इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की मानी जाती है।


चैत्र नवरात्रि का आरंभ, जो देवी दुर्गा की उपासना का समय होता है।


राम का राज्याभिषेक, युगादि, गुड़ी पड़वा जैसे पर्वों से जुड़ाव।


किसानों के लिए महत्व: यह रबी फसल की कटाई और नई फसल का आगमन भी दर्शाता है।


3. खगोलीय अंतर

अंग्रेजी कैलेंडर सिर्फ सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है, जबकि हिंदू पंचांग चंद्रमा की कला (तिथि) और सूर्य की राशि दोनों को मिलाकर तिथियाँ निर्धारित करता है।


इसीलिए हिंदू नव वर्ष की तिथि हर साल बदलती है (मार्च-अप्रैल के बीच), जबकि अंग्रेजी नव वर्ष हमेशा 1 जनवरी को ही आता है।


4. ऐतिहासिक कारण

भारत में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रभाव ब्रिटिश शासन के दौरान बढ़ा, जब इसे प्रशासनिक कार्यों के लिए लागू किया गया।


लेकिन हिंदू परंपराएँ और कृषि-चक्र चंद्र-सौर पंचांग से जुड़े रहे, इसलिए दोनों कैलेंडर साथ-साथ चलते हैं।


निष्कर्ष: दोनों का अपना महत्व

अंग्रेजी नव वर्ष (1 जनवरी)                 हिंदू नव वर्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा)

सौर आधारित, सार्वभौमिक उपयोग       चंद्र-सौर आधारित, सांस्कृतिक-धार्मिक महत्व

नई शुरुआत का प्रतीक                      धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक संदर्भ

पश्चिमी प्रभाव से प्रचलित                      भारतीय सभ्यता की हज़ारों साल पुरानी परंपरा



दोनों ही कैलेंडर अपने-अपने तरीके से महत्वपूर्ण हैं। अंग्रेजी कैलेंडर आधुनिक जीवन और वैश्विक समन्वय के लिए उपयोगी है, जबकि हिंदू नव वर्ष हमें प्रकृति, धर्म और संस्कृति से जोड़ता है।


इसलिए, "दो कैलेंडर, दो दुनिया" नहीं, बल्कि "एक जीवन, दो रीतियाँ" कहना अधिक उचित होगा! 🙏 

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