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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

दिल्ली सरकार का पहला बजट: वादे बड़े, जेब हल्की –क्या वाकई मुमकिन है बदलाव?

दिल्ली सरकार का पहला बजट: वादे बड़े, जेब हल्की –क्या वाकई मुमकिन है बदलाव?








We News 24 Hindi / वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार 



नई दिल्ली :- में बीजेपी की नई सरकार के पहले बजट की घोषणा हो चुकी है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 1 लाख करोड़ रुपये के बजट को “ऐतिहासिक” बताया, लेकिन क्या वाकई यह बजट दिल्ली की जमीनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है? इस खबर  में हम एक-एक करके उन पहलुओं पर रोशनी डालेंगे जो इस बजट को सिर्फ “दिखावटी” बना सकते हैं या फिर असल में “परिवर्तनकारी” भी।


बजट में बिजली, सड़क, पानी और संपर्क सहित 10 क्षेत्रों पर फोकस किया गया है। इस बजट को सीएम ने ऐतिहासिक बजट बताते हुए पिछले आम आदमी पार्टी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि दिल्ली में अब भ्रष्टाचार का दौर खत्म हो गया है। रेखा गुप्ता ने दिल्ली के लिए भले ही एक लाख करोड़ रुपये के बजट के ऐलान के साथ बड़े-बड़े वादे कर दिए हों, लेकिन इन्हें पूरा करने की राह आसान नहीं होगी।




दिल्ली सरकार का पहला बजट: वादे बड़े, जेब हल्की –क्या वाकई मुमकिन है बदलाव?



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भाजपा ने चुनावों में कई बड़े-बड़े वादे किए थे। भाजपा की रेखा सरकार को इन वादों के जाल में न फंस जाय । दिल्ली सरकार के पास फंड की भारी कमी है। उनके विभाग में फंड नहीं है। ऐसा न हो कि चुनावी वादे सिर्फ नारा बनकर रह जाएं। अगर ऐसा हुआ तो अगली बार फिर से वे दिल्ली की सत्ता से दूर हो सकते है । इस बार उन्हें 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता का सुख मिला है। अब भी दिल्ली के आम नागरिक के जीवन में कोई खास  बदलाव नहीं आया है। वही पुरानी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। 

दिल्ली सरकार का पहला बजट: वादे बड़े, जेब हल्की –क्या वाकई मुमकिन है बदलाव?

दिल्ली की जनता  आज भी बिजली, पानी और सड़क की मुलभुत समस्या से जूझ रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे केजरीवाल की सरकार में जूझ रहे थे। आपको बता दें कि मार्च से ही लोगों को घरों में पानी की समस्या सताने लगी है। अभी मई-जून की भीषण गर्मी बाकी है। दिल्ली जल बोर्ड का बहुत बुरा हाल है। उनके पास न तो फंड है और न ही नई पाइपलाइन बिछाने या उनकी मरम्मत करने के लिए कर्मचारी। कौन जानता है कि रेखा गुप्ता की सरकार दिल्ली के लोगों को इन समस्याओं से कैसे राहत दिलाएगी? सरकार ने अपने संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल नहीं किया, तो यह महज एक "वादों की सरकार" बनकर रह जाएगी।



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 1. बजट की बड़ी तस्वीर: 1 लाख करोड़ की योजना

बीजेपी सरकार ने इस बार दिल्ली के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। यह पिछले साल की आम आदमी पार्टी सरकार के 76,000 करोड़ रुपये के बजट से 24,000 करोड़ अधिक है।

लेकिन क्या इस बढ़े हुए बजट के लिए जरूरी संसाधन हैं?


 2. कहां से आएंगे पैसे? वित्तीय संकट की हकीकत

अनुमानित कर राजस्व: 58,750 करोड़ रुपये


केंद्र से अनुदान: 7,348 करोड़ रुपये


छोटी बचत ऋण: 15,000 करोड़ रुपये


कुल मिलाकर देखा जाए तो दिल्ली सरकार के पास कुल संसाधनों में भारी कमी है।

राजस्व वृद्धि की दर सिर्फ 9-10% सालाना है, ऐसे में एक लाख करोड़ का बजट बनाना जोखिम भरा दांव है।



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 3. पहले से घाटे में है सरकार

दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, जो बाजार से सीधे कर्ज नहीं ले सकता। ऐसे में सरकार के पास सीमित साधन हैं। पहले ही महिला सम्मान योजना पर खर्च को लेकर वित्त विभाग ने चेतावनी दी थी। अब बीजेपी की महिला समृद्धि योजना (5,100 करोड़ रुपये) जैसी नई घोषणाएं संकट को और बढ़ा सकती हैं।


 4. चुनावी वादे बन सकते हैं आर्थिक बोझ

बीजेपी ने चुनाव में कई बड़े वादे किए थे 


महिलाओं को ₹2,500 मासिक सहायता


गर्भवती महिलाओं को ₹21,000 सहायता


बुजुर्गों के लिए बढ़ी हुई पेंशन


मुफ्त शिक्षा योजनाएं


इन सभी को लागू करने के लिए हजारों करोड़ रुपये की जरूरत है, लेकिन बजट आवंटन इनकी तुलना में बेहद कम है।



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 5. महिला समृद्धि योजना: सिर्फ घोषणा या हकीकत?

लाभार्थी महिलाएं: 38 लाख


वार्षिक अनुमानित खर्च: ₹11,400 करोड़


वास्तविक बजट में आवंटन: ₹5,100 करोड़


यानी सिर्फ 45% फंड ही आवंटित किया गया है, बाकी कहां से आएगा – यह बड़ा सवाल है।


 6. बुजुर्गों की पेंशन योजना: आधे अधूरे वादे

दिल्ली में 24.4 लाख वरिष्ठ नागरिक


पेंशन दर: ₹2,500 (60-70 वर्ष), ₹3,000 (70 वर्ष से ऊपर)


आवश्यक बजट: ₹4,100 करोड़


अभी तक कोई स्पष्ट फंडिंग नहीं दिखाई गई।


 7. यमुना सफाई: फिर अधूरी कोशिश?

अब तक खर्च: ₹8,000 करोड़


इस बजट में आवंटन: ₹500 करोड़


विशेषज्ञों के अनुसार, सफल सफाई के लिए हजारों करोड़ और दीर्घकालिक प्लानिंग की ज़रूरत है।


 8. स्वास्थ्य और शिक्षा: प्राथमिकता में, पर संसाधन सीमित

आयुष्मान भारत योजना: ₹2,144 करोड़


सीएम श्री स्कूल स्कीम: ₹100 करोड़


लेकिन इन योजनाओं को सफल बनाने के लिए संरचना, स्टाफ और लॉजिस्टिक्स की भारी आवश्यकता है।


 9. सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर: नाकाफी बजट

सड़कों के लिए: ₹3,843 करोड़


बाढ़ नियंत्रण: ₹603 करोड़


जल आपूर्ति: ₹9,000 करोड़


परिवहन: ₹12,952 करोड़


दिल्ली की बदहाल बुनियादी ढांचे को देखते हुए ये आंकड़े न्यूनतम जरूरतों को भी शायद ही पूरा कर सकें।


10. प्रशासनिक और राजनीतिक अड़चनें

दिल्ली में पुलिस और भूमि जैसे अहम विषय केंद्र के अधीन हैं।


केंद्र से सहयोग के बिना योजनाओं पर अमल मुश्किल।


विपक्ष (AAP) लगातार दबाव बना रहा है, जिससे सरकार की राह और कठिन हो सकती है।


नौकरशाही में समन्वय की कमी पहले से ही नजर आने लगी है।


 निष्कर्ष: बजट अच्छा है… अगर ये कागज़ से निकलकर ज़मीन पर उतरे

रेखा गुप्ता सरकार ने वादों की झड़ी जरूर लगाई है, लेकिन असली कसौटी तब होगी जब ये योजनाएं ज़मीन पर लागू हों। वित्तीय संसाधनों की कमी, राजस्व घाटा और राजनीतिक टकराव जैसे कई मुद्दे सरकार की राह मुश्किल बना सकते हैं। 

दिल्ली की सत्ता में 27 साल बाद वापसी कर पाई भारतीय जनता पार्टी के लिए यह समय बेहद अहम है। चुनावी वादों की लंबी फेहरिस्त और बड़े-बड़े दावों के बीच अब वक्त है उन्हें धरातल पर उतारने का। लेकिन मौजूदा स्थिति देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि रेखा सरकार वादों के जाल में उलझती नजर आ रही है।


रेखा सरकार को समझना होगा कि चुनावी वादे अगर सिर्फ नारों तक सीमित रह गए, तो जनता दोबारा सत्ता में लाने का मौका नहीं देगी। सत्ता के साथ जवाबदेही भी आती है।

27 साल बाद मिला यह अवसर भरोसे की बुनियाद पर टिका है। अगर वह भरोसा टूटा, तो फिर से सत्ता से बाहर होने में देर नहीं लगेगी।


जब बुनियादी सेवाएं भी भगवान भरोसे चल रही हों, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

सरकार को चाहिए कि वह योजनाओं को लागू करने के लिए व्यवस्थित और पारदर्शी नीति बनाए, ताकि जनता को यह भरोसा हो सके कि उनकी परेशानियों को समझने और हल करने के लिए सरकार गंभीर है।

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