We News 24 Hindi / रिपोर्ट: वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार
नई दिल्ली :- देश की राजधानी, वो भी 21वीं सदी में—जहाँ एक ओर एक लाख करोड़ का बजट पेश होता है, वहीं दूसरी ओर दक्षिणी दिल्ली के छत्तरपुर के रामलीला चौक जैसे इलाके आज भी पानी की एक-एक बूंद को तरस रहे हैं।
यह कोई गांव नहीं, कोई रेगिस्तान नहीं—यह दिल्ली है जनाब। और ये कहानी है उस प्यास की, जो न दिल्ली जल बोर्पाड इपलाइन से बुझती है, न ही नेताओं के वादों से। और नहीं जल बोर्ड के अधिकारी के आश्वसन से .
दक्षिणी दिल्ली के छत्तरपुर इलाके में बसे रामलीला चौक के लोगों की हालत देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश की राजधानी में पानी जैसी मूलभूत सुविधा भी किस हाल में है। पिछले एक साल से लोग दिल्ली जल बोर्ड, जेई, एई और स्थानीय विधायक करतार सिंह तंवर के चक्कर काटते-काटते थक चुके हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
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सरकारी वादे, खाली पाइपलाइन
जब लोग विधायक से मिलते हैं, तो वह जल बोर्ड के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। जब जनता जेई और एई के पास जाती है, तो वही पुराना बहाना—“फंड नहीं है”—सुनने को मिलता है। ठीक वही बात जो केजरीवाल सरकार के समय हुआ करती थी। अब सवाल उठता है: अगर सत्ता बदलने के बाद भी हालात नहीं बदलते, तो फिर इन सांसदों, विधायकों और सरकारों का क्या फायदा? ये वही बहाने हैं, जो केजरीवाल सरकार में भी सुने गए थे—और अब बीजेपी की सरकार में भी वही हाल है।
प्रवेश वर्मा की स्वीकारोक्ति और गहरे सवाल
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अवैध निर्माण: संकट की जड़
जल बोर्ड की हेल्पलाइन: ‘सिस्टम’ का आइना
तो अब जनता क्या करे?
निष्कर्ष: समाधान की राह और ज़िम्मेदारियों का इम्तिहान
अगर सरकार और संबंधित विभाग, खासतौर पर दिल्ली जल बोर्ड, अवैध कनेक्शनों पर सख्ती से कार्रवाई करें और ईमानदारी से समाधान पर काम करें, तो राजधानी की आधी से ज्यादा पानी की समस्या का हल संभव है।
दिल्ली को रोजाना 1200 MGD (मिलियन गैलन प्रति दिन) पानी की जरूरत है, लेकिन मौजूदा आपूर्ति सिर्फ 990 MGD तक सीमित है। यह 210 MGD की भारी कमी उसी वक्त पूरी की जा सकती है, अगर:
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अवैध जल कनेक्शन काटे जाएं
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पानी की चोरी रोकने के लिए जमीनी स्तर पर निगरानी बढ़े
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जल वितरण में पारदर्शिता लाई जाए
हालांकि जल मंत्री प्रवेश वर्मा ने दावा किया है कि:
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मई से जुलाई 2025 के बीच 249 नए ट्यूबवेल लगाए जाएंगे
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मई: 96
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जून: 88
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जुलाई: 55
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जल टैंकरों की संख्या 901 से बढ़ाकर 1300 की जाएगी, ताकि ज़रूरतमंद बस्तियों तक समय पर पानी पहुंचे।
अब देखना ये है कि ये घोषणाएं कागजों में सिमट कर रह जाएंगी या वास्तव में छत्तरपुर जैसे इलाकों की प्यास बुझाएंगी।
जनता अब इंतज़ार नहीं करेगी—निगरानी रखेगी, सवाल पूछेगी और जवाब मांगेगी।
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