We News 24 Hindi / रिपोर्ट :- सीनियर पत्रकार दीपक कुमार
नई दिल्ली :- भारत में सांप्रदायिक हिंसा और दंगों के मामले पिछले कुछ वर्षों में चर्चा का विषय बने हुए हैं। हाल ही में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हुई हिंसा ने एक बार फिर देश में साम्प्रदायिक सद्भाव को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वाकई भारत दंगों की ओर बढ़ रहा है? क्या बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं हैं? क्या वक्फ कानून के नाम पर देश में दंगे भड़काने की कोई साजिश चल रही है? आइए, इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
बंगाल में हिंसा: क्या हुआ?
14 अप्रैल 2025 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ कानून के विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए। इस दौरान सुती, समसेरगंज, धुलियान और जंगीपुर जैसे इलाकों में तनाव फैल गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, हिंसा के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई और 500 से अधिक हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़कर मालदा जिले में शरण लेनी पड़ी । भगवान की मूर्ति बनाने वाले एक ही परिवार के पिता के साथ दो बेटे की निर्मम हत्या कर दी गयी ये मामला बहुत संवेदनशील और गंभीर है। जब एक समुदाय विशेष के लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़े और धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हिंसा हो, तो उसका असर सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रहता—पूरे देश की सामाजिक एकता पर इसका असर पड़ता है।
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हिंसा के दावे: पलायन करने वाले लोगों ने आरोप लगाया कि उनके घरों में आग लगा दी गई, महिलाओं के साथ अभद्रता की गई और पुरुषों को पीटा गया।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर हिंदुओं की सुरक्षा न करने का आरोप लगाया, जबकि शासक दल ने इसे सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिश बताया।
सुरक्षा व्यवस्था: स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 1,600 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया और इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गईं ।
क्या भारत में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ रही है? आंकड़े क्या कहते हैं?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार: 2020 में सांप्रदायिक हिंसा की 857 घटनाएं दर्ज की गईं, जो 2019 के मुकाबले 94% अधिक थीं ।
दिल्ली में अचानक उछाल: 2014-2019 के बीच दिल्ली में केवल 2 सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज हुईं, लेकिन 2020 में यह संख्या बढ़कर 520 हो गई ।
2014-2020 के बीच भारत में 5,417 सांप्रदायिक दंगे दर्ज किए गए, जबकि 2006-2012 (कांग्रेस शासन) में यह संख्या 5,142 थी ।
हालांकि, घटनाओं की संख्या में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। 2018 में सांप्रदायिक हिंसा के मामले घटकर 512 रह गए, लेकिन पीड़ितों की संख्या 812 थी, जो चिंता का विषय है ।
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वक्फ कानून क्या है और क्यों यह विवादों में है?
वक्फ एक इस्लामिक ट्रस्ट है जो मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं और संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर नए नियम बनाए हैं, जिसके विरोध में कई मुस्लिम संगठन सड़कों पर उतर आए।
विरोध का कारण: कुछ समूहों का मानना है कि सरकार मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं के अधिकारों में दखल दे रही है।
हिंसा की आशंका: विरोध प्रदर्शनों के दौरान कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिंसा भड़काने की आशंका जताई जा रही है।
राजनीतिक इस्तेमाल? विपक्षी दलों का आरोप है कि कुछ राजनीतिक पार्टियां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं ।
क्या बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं हैं?
पश्चिम बंगाल में हाल की घटनाओं ने हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है:
धुलियान से पलायन: 500 से अधिक हिंदू परिवारों ने हिंसा के बाद मालदा में शरण ली।
राज्य सरकार पर आरोप: विपक्ष का कहना है कि टीएमसी सरकार की "तुष्टीकरण की नीति" ने कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा दिया है ।
राष्ट्रपति शासन की मांग: कुछ संगठनों ने बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।
हालांकि, राज्य सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने का दावा किया है और पुलिस ने 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है ।
क्या किसी राजनीतिक पार्टी का हाथ है?
सांप्रदायिक हिंसा के पीछे राजनीतिक हाथ होने के आरोप लगते रहे हैं:
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "दंगे वहीं होते हैं, जहां सरकार चाहती है" ।
बीजेपी vs कांग्रेस: आंकड़े बताते हैं कि दोनों पार्टियों के शासनकाल में सांप्रदायिक हिंसा हुई है, लेकिन तुलना करना मुश्किल है क्योंकि NCRB ने 2014 से पहले दंगों को सांप्रदायिक श्रेणी में नहीं रखा था ।
चुनावी लाभ? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सांप्रदायिक मुद्दों को उछालकर राजनीतिक दल वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश करते हैं।
निष्कर्ष: क्या भारत दंगों की ओर बढ़ रहा है?
हाल के वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा के आंकड़े चिंताजनक हैं, लेकिन यह कहना गलत होगा कि पूरा देश दंगों की ओर बढ़ रहा है। बंगाल की हिंसा एक अलगाववादी घटना हो सकती है, जिसमें कुछ असामाजिक तत्वों ने वक्फ कानून के नाम पर हिंसा भड़काई।
समाधान की आवश्यकता: सरकार और प्रशासन को सख्त कार्रवाई करके दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाल करना होगा।
मीडिया और राजनीति की भूमिका: सांप्रदायिक तनाव को हवा देने के बजाय शांति और सद्भाव का संदेश फैलाना चाहिए।
जनता की जिम्मेदारी: धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देने वाले तत्वों को अलग-थलग करना होगा।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और यहां के नागरिकों ने हमेशा साथ मिलकर चुनौतियों का सामना किया है। आवश्यकता इस बात की है कि राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर देश की एकता और अखंडता को बनाए रखा जाए।
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