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रविवार, 6 अप्रैल 2025

कर्नाटक हाई कोर्ट ने की UCC की पैरवी : कोर्ट ने कहा जरुरी अनुच्छेद 44 के तहत कानून बनाना

कर्नाटक हाई कोर्ट की UCC पर टिप्पणी क्या अब एक समान न्याय का रास्ता होगा साफ






We News 24 Hindi / अंकित कुमार 



बेंगुलुरु :- भारत एक बहुधार्मिक, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है, लेकिन क्या हर नागरिक को कानून की नजर में बराबरी मिलती है? इस सवाल पर फिर से चर्चा तेज़ हो गई है कर्नाटक हाई कोर्ट के हालिया फैसले के बाद, जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की जोरदार वकालत की गई है। 


कोर्ट ने  टिप्पणी की  समानता और लैंगिक न्याय का आह्वान जस्टिस हंचा ते संजीवकुमार ने एक संपत्ति विवाद के फैसले में कहा कि भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू होने से संविधान की मूल भावना को बल मिलेगा। उन्होंने कहा:“UCC से संविधान की प्रस्तावना में लिखे आदर्श – समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय – को सच्चे अर्थों में साकार किया जा सकता है।”कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों से संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत कानून बनाने का आग्रह किया है। कोर्ट का कहना है कि ऐसा कानून सभी समुदायों में समानता और लैंगिक न्याय सुनिश्चित करेगा।


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 केस का संदर्भ: शहनाज बेगम की संपत्ति का बंटवारा

इस मामले में एक मुस्लिम महिला शहनाज बेगम की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था।


कोर्ट ने उनके पति को 75% भाइयों को 10% और बहन को मात्र 5% हिस्सा दिया। यह बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हुआ, जिसमें महिलाओं के साथ संपत्ति में भेदभाव का आरोप लंबे समय से लगता रहा है।

 हिंदू बनाम मुस्लिम पर्सनल लॉ: कहां है फर्क?

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटियों और बेटों को समान अधिकार हैं, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में: पुरुषों को महिलाओं से दुगना हिस्सा मिलता है। बहनों को केवल "रेसिड्यूरी" यानी बचा-कुचा हिस्सा दिया जाता है। जस्टिस संजीवकुमार ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 – समानता के अधिकार – के विरुद्ध बताया।



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 UCC का क्या मतलब है?

UCC (Uniform Civil Code) का उद्देश्य है कि भारत में हर नागरिक – चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हो – एक समान नागरिक कानून के तहत जीवन जी सके।


इसमें शामिल होंगे:


विवाह


तलाक


उत्तराधिकार


गोद लेना


संपत्ति का अधिकार


 संविधान में UCC का स्थान – अनुच्छेद 44

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में यह स्पष्ट लिखा गया है कि:


"राज्य भारत के समस्त नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा।"


हालांकि यह निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles) में आता है, यानी इसे लागू करना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है, बाध्यकारी नहीं।


UCC: समर्थन बनाम विरोध

 समर्थन में तर्क:

लैंगिक समानता को बढ़ावा


संविधान की भावना के अनुरूप


धार्मिक भेदभाव का अंत


एकरूपता और राष्ट्र की एकता को बल


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 विरोध में तर्क:

धार्मिक स्वतंत्रता का हनन


अल्पसंख्यक समुदायों की परंपराओं पर असर


राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल का डर


 गोवा और उत्तराखंड का उदाहरण

जस्टिस संजीवकुमार ने यह भी उल्लेख किया कि गोवा में UCC पहले से लागू है, और उत्तराखंड सरकार ने भी यूसीसी लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह एक रोल मॉडल के रूप में पेश किया गया है।


 निष्कर्ष: क्या अब वाकई आएगा बदलाव?

कर्नाटक हाई कोर्ट की टिप्पणी कोई पहली बार नहीं आई है, लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीधे-सीधे केंद्र और राज्य सरकार से कानून बनाने की सिफारिश करता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सरकारें इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगी, या फिर यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक बहस और चुनावी घोषणाओं तक ही सीमित रह जाएगा।


वर्तमान स्थिति (पर्सनल लॉ)                                                        UCC लागू होने पर

अलग-अलग धर्मों के लिए अलग शादी के कानून                             एक समान विवाह कानून

संपत्ति में धर्म आधारित बंटवारा                                                     सभी को समान अधिकार

गोद लेने के नियम अलग                                                             गोद लेने का सिस्टम

महिलाओं को कम अधिकार (कुछ मामलों में)                            लैंगिक न्याय


क्या आप UCC के पक्ष में हैं या विरोध में?

अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं। 

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