We News 24 Hindi / रिपोर्ट: सुजीत कुमार विश्वास
We News 24 Hindi / रिपोर्ट: सुजीत कुमार विश्वास
कोलकाता :- पश्चिम बंगाल का शांत और ऐतिहासिक जिला मुर्शिदाबाद आज आंसुओं और राख में तब्दील हो चुका है। वक्फ कानून के विरोध में शुरू हुआ प्रदर्शन इतनी तेजी से हिंसा में तब्दील हुआ कि पूरा इलाका देखते ही देखते जंग का मैदान बन गया। इस भयावह दंगे में तीन निर्दोष लोगों की जान चली गई, दर्जनों घरों को आग के हवाले कर दिया गया, और सैकड़ों लोग हमेशा के लिए बेघर हो गए।
जब घर जलते हैं, तो सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, सपने भी जलते हैं
हिंसा के दौरान खासतौर पर हिंदू परिवारों को निशाना बनाया गया। घरों को लूटा गया, महिलाओं और बच्चों को डराकर बाहर निकाला गया, और फिर उन आशियानों को आग लगा दी गई। कई बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में कभी इतना खौफनाक मंजर नहीं देखा।
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एक पीड़ित महिला ने बताया,
"हमारे पास अब कुछ नहीं बचा। जो कुछ भी था, इसी घर में था। अब बच्चों को लेकर कहां जाएं, समझ नहीं आ रहा। रातों को नींद नहीं आती, डर अब भी पीछा नहीं छोड़ रहा।"
पुलिस भी बनी हिंसा का शिकार
स्थिति को काबू में लाने पहुंची पुलिस पर भी उपद्रवियों ने हमला किया। पथराव हुआ, पुलिस की गाड़ियां जला दी गईं, और जवानों को जान बचाकर भागना पड़ा। कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है—आखिर दंगाइयों को इतनी छूट क्यों मिली कि वो पूरे शहर को तहस-नहस कर गए?
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जिंदगी का संघर्ष फिर शुरू, लेकिन दिलों में डर बाकी है
अब मुर्शिदाबाद के कुछ हिस्सों में बस बिखरा हुआ मलबा, जले हुए दीवारों की बू और खौफ का सन्नाटा बाकी है। पुनर्वास की बातें तो हो रही हैं, लेकिन जले हुए दिलों और टूटी हुई आत्माओं की मरम्मत कौन करेगा?पीड़ितों की आंखों में एक ही सवाल है:
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"हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ?"
ज़रूरत है न्याय की, राहत की और भरोसे की बहाली की
इस पूरे मामले में सरकार और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। क्या हिंसा को समय रहते रोका नहीं जा सकता था? क्या पीड़ितों की मदद के लिए पर्याप्त कदम उठाए गए?
आज मुर्शिदाबाद के लोग न्याय, सुरक्षा और इंसाफ की आस में हैं। ये रिपोर्ट सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि उन हजारों टूटे हुए सपनों की आवाज़ है जो फिर से बसना चाहते हैं।
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