We News 24 Hindi / रिपोर्ट :- सीनियर रिपोटर दीपक कुमार
नई दिल्ली :- पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हाल ही में जो हिंसा देखने को मिली, वह किसी सामान्य सांप्रदायिक झड़प का परिणाम नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सांप्रदायिक हमला था। यह घटना एक बार फिर हमें 16 अगस्त 1946 के "डायरेक्ट एक्शन डे" की याद दिलाती है, जब मुस्लिम लीग के आह्वान पर हिंदू समुदाय को टारगेट कर नरसंहार किया गया था। इतिहास खुद को दोहराता है — और मुर्शिदाबाद इसका जीवित प्रमाण बन गया है।
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घटना का संक्षिप्त विवरण: मुर्शिदाबाद में हाल ही में एक विशेष धार्मिक संगठन के खिलाफ सोशल मीडिया पर हुई टिप्पणियों के विरोध में एक समुदाय विशेष की भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किया। इस भीड़ ने न केवल हिंदू घरों और दुकानों को निशाना बनाया, बल्कि एक प्रख्यात मूर्तिकार के पूरे परिवार की नृशंस हत्या कर दी गई। मंदिरों को अपवित्र किया गया, धार्मिक झंडे फाड़े गए और महिलाओं-बच्चों तक को नहीं बख्शा गया।
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1946 के डायरेक्ट एक्शन डे की समानताएँ:
पूर्व नियोजित हमला: डायरेक्ट एक्शन डे की तरह, मुर्शिदाबाद की हिंसा भी पूर्व नियोजित और सटीक रणनीति के तहत की गई थी।
हिंदू समुदाय को लक्षित करना: तब भी और अब भी, एक समुदाय विशेष को टारगेट किया गया।
प्रशासन की निष्क्रियता: 1946 की तरह ही, इस बार भी स्थानीय पुलिस मूक दर्शक बनी रही। न समय पर सहायता पहुँची, न हमलावरों को रोका गया।
धार्मिक प्रतीकों पर हमला: मूर्तियाँ तोड़ी गईं, मंदिर अपवित्र किए गए — यह केवल हिंसा नहीं, भारत की धार्मिक अस्मिता पर हमला था।
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प्रशासन और मीडिया की चुप्पी: मुख्यधारा मीडिया ने इस घटना को या तो दबा दिया या उसे 'दंगा' कह कर उसकी गंभीरता को कमजोर कर दिया। वहीं प्रशासनिक ढांचे ने पीड़ितों की पुकार को अनसुना कर दिया। यह सब दर्शाता है कि भारत में बहुसंख्यक समुदाय की पीड़ा अब राजनीतिक दृष्टिकोण से अनदेखी की जा रही है।
मूर्तिकार की हत्या: प्रतीकात्मक आतंक का उदाहरण एक मूर्तिकार, जो देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाकर जीविकोपार्जन करता था, उसे और उसके पूरे परिवार को जला दिया गया। यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, भारतीय संस्कृति और आस्था पर सीधा हमला है।
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यह केवल बंगाल की कहानी नहीं है: मुर्शिदाबाद की यह घटना पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यह साबित करती है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक सहिष्णुता को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट करने की कोशिश की जा रही है। यह घटना दर्शाती है कि कुछ तत्व आज भी उसी 1946 की मानसिकता को जीवित रखे हुए हैं।
हम क्या कर सकते हैं?
जागरूकता फैलाएँ — इस घटना को दबाने की साजिश को बेनकाब करें।
प्रशासन से सवाल करें — FIR, गिरफ्तारियाँ और मुआवजे की स्थिति पर RTI दायर करें।
पीड़ितों की सहायता करें — ज़मीनी स्तर पर राहत और पुनर्वास के प्रयासों से जुड़ें।
डायरेक्ट एक्शन डे को याद रखें — ताकि हम दोबारा वही भूल न दोहराएँ।
निष्कर्ष: मुर्शिदाबाद की हिंसा केवल एक घटना नहीं, बल्कि भारत की धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला है। अगर हमने अभी नहीं चेते, तो इतिहास खुद को और भी भयावह रूप में दोहराएगा।
यह समय है — सच बोलने का, पीड़ितों के साथ खड़े होने का, और सच्चाई को उजागर करने का।
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