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बुधवार, 2 अप्रैल 2025

संघ के 100 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा :-"हिंदुत्व प्रेम बना रोड़ा: सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी को नहीं बनने दिया पीएम !"

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संघ के 100 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा :-"हिंदुत्व प्रेम बना रोड़ा: सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी को नहीं बनने दिया पीएम  !"






We News 24 Hindi /  दीपक कुमार 


नई दिल्ली :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने 100 वर्ष पूरे कर चुका है। इस ऐतिहासिक अवसर पर, हम उन प्रमुख घटनाओं और हस्तियों पर एक नज़र डालते हैं, जिन्होंने संघ के कार्यक्रमों में भाग लिया और चर्चा का विषय बने।संघ के कार्यक्रम में शिरकत करने वाली ऐसी बड़ी हस्तियों के बारे में जिनके नागपुर मुख्यालय जाने को लेकर खूब बवाल मचा। इस कड़ी में एक नाम है-पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे प्रणब मुखर्जी का। 


प्रणब मुखर्जी का नागपुर दौरा: एक ऐतिहासिक घटना


 2018 में पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय नागपुर जाने के फैसले ने बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया था। कांग्रेस नेतृत्व, विशेष रूप से सोनिया गांधी और राहुल गांधी, इस निर्णय से असहमत थे।2009 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की सरकार बनने के बाद प्रणब मुखर्जी के प्रधानमंत्री न बन पाने के पीछे कई  कारण थे। जिसमे प्रमुख कारण है प्रणब मुखर्जी के हिंदुत्व प्रेम की वजह जिसके वजह से  सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री नही बनने दिया और उनकी जगह मनमोहन सिंह को पीएम बना दिया।


संघ के 100 वर्ष की ऐतिहासिक यात्रा :-"हिंदुत्व प्रेम बना रोड़ा: सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी को नहीं बनने दिया पीएम  !"



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कांग्रेस का विरोध और प्रणब मुखर्जी का निर्णय


कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रणब मुखर्जी से संघ के कार्यक्रम में न जाने का आग्रह किया। अहमद पटेल ने इस कदम की सार्वजनिक रूप से आलोचना की।कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इसकी खुलकर आलोचना की। अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा: "मुझे प्रणब दा से ऐसी अपेक्षा नहीं थी!" 


प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी इस फैसले पर सार्वजनिक रूप से असहमति जताई। आनंद शर्मा और जयराम रमेश जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की। प्रणब मुखर्जी की विचारधारा और नागपुर जाने का कारण वे हिंदू धर्म और हिंदुत्व को गहराई से समझते थे।

2009 में कांग्रेस की जीत के बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया, क्योंकि उनके हिंदुत्व से जुड़े विचारों को सोनिया गांधी ने स्वीकार नहीं किया।

संघ का निमंत्रण मिलने पर उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया।

संघ के शिविरों में शामिल होने वाली अन्य प्रमुख हस्तियां


प्रणब मुखर्जी अकेले नहीं थे, जिन्होंने संघ के कार्यक्रम में भाग लिया।




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महात्मा गांधी (1934) – उन्होंने वर्धा में संघ के शिविर में भाग लिया था और संगठन के अनुशासन व छुआछूत विरोधी गतिविधियों की सराहना की थी।संघ के खिचड़ी भोज में सभी वर्ग के लोगों के एक साथ भोजन करने के कार्यक्रम से प्रभावित हुए थे।


डॉ. जाकिर हुसैन – पूर्व राष्ट्रपति संघ के कार्यक्रम में शामिल हुए थे।


जयप्रकाश नारायण – उन्होंने भी संघ के विचारों की सराहना की थी।


सेना के पूर्व जनरल करियप्पा – उन्होंने भी संघ के कार्यक्रम में भाग लिया था।


संघ का विकास और विस्तार


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संघ की स्थापना (1925)


राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। 1925 में विजय दशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की थी। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपने घर में 12 स्वंयसेवकों को संबोधित किया था। जिस वक्त में कांग्रेस के खिलाफ खड़ा होना चुनौती था, उस वक्त में हेडगेवार ने खुद शाखा लगाई।




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संघ का राष्ट्रीयकरण


मदन मोहन मालवीय के समर्थन से बीएचयू में संघ का कार्यालय खुला।

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के नेतृत्व में संघ का तेज़ी से विस्तार हुआ।


संघ पर लगे प्रतिबंध और चुनौतियां

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पहला प्रतिबंध (1948)

30 जनवरी 1948 को



कर दी थी। इसके बाद संघ पर पहला प्रतिबंध लगा। 1948 में लगा प्रतिबंध सबूतों के अभाव में 1949 में सरदार पटेल ने हटा दिया। सरकारी आयोग ने संघ को उस वक्त क्लीन चिट दे दी थी।


दूसरा प्रतिबंध (1975)

1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया, तब जनसंघ के साथ-साथ आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, आपातकाल हटने के बाद उस पर से पाबंदी हटा ली गई।


तीसरा प्रतिबंध (1992)

1992 में बाबरी विध्वंस के बाद भी आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि बाद में प्रतिबंध हटा लिया गया। 

संघ की राजनीतिक और सामाजिक भूमिका

1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ की भूमिका से प्रभावित होकर नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस परेड में संघ को आमंत्रित किया। उस वक्त महज 2 दिन के नोटिस पर ही 3000 स्वंयसेवकों ने गणवेश के साथ परेड में हिस्सा लिया था।

वाजपेयी और मोदी रह चुके हैं संघ प्रचारक पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ के प्रचारक रहे थे। उन्होंने संसद में खुलकर कहा था कि संघ देशहित में काम करने वाला संगठन है। वाजपेयी ने संसद में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान आपातकालीन स्थिति में आरएसएस की भूमिका का भी जिक्र किया था। पीएम मोदी भी आरएसएस के प्रचारक रहे हैं। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद संघ की शाखाओं में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।




संघ का अंतरराष्ट्रीय विस्तार

80 से अधिक देशों में संघ के संगठन कार्यरत हैं।

50 से अधिक संगठन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं।लगभग 200 से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं, जिसमें कुछ प्रमुख संगठन हैं जो संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और सामाज के बीच सक्रिय हैं। इनमें से कुछ राष्ट्रवादी, सामाजिक, राजनैतिक, युवा वर्गों के बीच में कार्य करने वाले, शिक्षा के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, सुरक्षा के क्षेत्र में, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में, संतों के बीच में, विदेशों में सक्रिय रहते हैं।

संघ के प्रमुख संगठनों में सेवा भारती, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ शामिल हैं।


संघ और भारतीय राजनीति

भाजपा संघ की राजनीतिक इकाई मानी जाती है।

संघ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को अपनी विचारधारा के केंद्र में रखता है।

समाज के हर वर्ग में अपनी पकड़ बनाने के लिए संघ विभिन्न संगठनों के माध्यम से कार्य करता है।


निष्कर्ष


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 100 वर्षों में एक छोटे संगठन से दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक बनने तक का सफर तय किया है। कई उतार-चढ़ावों के बावजूद, संघ ने अपनी विचारधारा और संगठनात्मक ढांचे को मजबूत बनाए रखा। प्रणब मुखर्जी का नागपुर दौरा हो या अन्य ऐतिहासिक घटनाएं, संघ हमेशा से भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है।


 

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