We News 24 Hindi / दीपक कुमार
वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर की पुस्तक 'द ब्रदर्स बिहारी' में लालू प्रसाद यादव के शुरुआती जीवन और उनके राजनीतिक सफर को बेहद रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। उनके बड़े भाई महावीर यादव के हवाले से बताया गया कि लालू बचपन से ही परिवार में सबसे अलग और खास थे। उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था जो उन्हें दूसरों से अलग बनाता था।
फुलवारिया से पटना तक का सफर
लालू यादव के गांव फुलवारिया (गोपालगंज) में यादव समुदाय के लोग अपना सरनेम 'राय' लिखा करते थे। उनके पिता कुंदन राय भी इसी परंपरा का पालन करते थे, लेकिन लालू यादव ने इसे नहीं अपनाया।वह अकेला था, जो परिवार के नाम 'राय' का उपयोग नहीं करता था। वह हमेशा लालू राय के स्थान पर लालू यादव लिखता था।
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उनके जीवन में बड़ा मोड़ तब आया जब एक दिन गांव के एक जमींदार ने उन्हें सलेट पर कुछ लिखते देखकर तंज कसते हुए कहा, "अब ई ग्वार का बच्चा भी पढ़ाई-लिखाई करी। बैरिस्टर बनाबे के बा का?" यह सुनकर उनके चाचा यदुनंद राय, तिलमिला गए लालू के चाचा पटना वेटनरी कॉलेज में ग्वाले का काम करते थे, उन्होंने लालू यादव को पटना ले जाकर पढ़ाने का फैसला किया। पटना आने के बाद लालू यादव ने मिलर हाई स्कूल से पढ़ाई की और फिर बी.एन. कॉलेज में दाखिला लिया। उस समय पटना विश्वविद्यालय में समाजवादी आंदोलन की जबरदस्त लहर थी और लालू यादव भी इससे अछूते नहीं रहे।
नरेंद्र सिंह: जिन्होंने लालू को राजनीति में उतारा
पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान लालू यादव की मुलाकात समाजवादी नेता श्रीकृष्ण सिंह के बेटे नरेंद्र सिंह से हुई। नरेंद्र सिंह उस समय समाजवादी छात्र कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने महसूस किया कि पिछड़ी जाति से आने वाले छात्रों को राजनीति में लाने की जरूरत है और लालू यादव इसके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति लगे।
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नरेंद्र सिंह ने एक किस्सा साझा किया, "मुझे याद है, एक बार लालू कॉलेज के गलियारे की रेलिंग पर चढ़ गए और गमछा हिला-हिलाकर कुछ ही मिनटों में सैकड़ों छात्रों को इकट्ठा कर लिया।" यह लालू यादव की नेतृत्व क्षमता का पहला बड़ा प्रमाण था।
क्लर्क की नौकरी और फिर राजनीति में वापसी
लालू यादव के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी। वह एक बार पुलिस भर्ती में भी शामिल हुए लेकिन दौड़ पास नहीं कर सके। 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष चुनाव में हारने के बाद वह राजनीति छोड़ने का मन बना चुके थे। इसी बीच उन्हें पटना वेटनरी कॉलेज में क्लर्क की नौकरी मिल गई।
नौकरी मिलने के बाद लालू यादव के जीवन में राबड़ी देवी का पदार्पण हुआ। साल 1973 में लालू यादव और राबड़ी देवी परिणय सूत्र में बंध गए। शादी के बाद 1973 में उन्होंने फिर से छात्र राजनीति में कदम रखा। उसी वर्ष वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए, जबकि सुशील कुमार मोदी महासचिव चुने गए। 1974 में अब्दुल गफूर सरकार ने छात्र संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे आंदोलन भड़क उठा।
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छात्र आंदोलन और इमरजेंसी का दौर
बिहार विधानसभा के घेराव के दौरान पुलिस फायरिंग में कई छात्रों की मौत हुई। पटना में कर्फ्यू लगा और कई छात्र गिरफ्तार हुए। लालू यादव गोलीबारी से पहले ही रेलवे ट्रैक पार कर अपने भाई के घर पहुंच गए थे। लालू यादव के भाई वेटनरी कॉलेज में रहते थे। अंधेरा होने के बाद नीतीश और नरेंद्र जब लालू यादव के भाई के घर पहुंचे तो लालू खाना बनाने में मशगूल थे। दोनों नेताओं को देखते ही लालू यादव बोले "हम त भाग अइली। बहुत बढ़िया मीट बनइले हई, आवा, आवा खा ल!"
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1975 में इमरजेंसी लागू होने के बाद लालू यादव को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से छूटने के बाद 1977 में उन्हें जनता पार्टी से छपरा लोकसभा सीट का टिकट मिला। यह उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी सफलता थी, क्योंकि इसी के साथ वह दिल्ली की राजनीति में प्रवेश कर गए। 1990 में वे बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने और यादव-मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति को मजबूत किया
संकर्षण ठाकुर के अनुसार, लालू यादव ने "जाति को राजनीति का हथियार" बनाया, लेकिन उनका शासनकाल अपराध और भ्रष्टाचार के लिए भी जाना गया ।नीतीश कुमार के विपरीत, लालू जनता से सीधे जुड़ने की कला में माहिर थे, जिसे ठाकुर ने "सबाल्टर्न करिश्मा" कहा है .
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1996-1998: अस्थिर राजनीति और चारा घोटाले की गूंज
भारत की केंद्रीय राजनीति में 1996 से 1998 का दौर सबसे अस्थिर समय माना जाता है। उस समय लालू प्रसाद यादव जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन्हें यह पद एस.आर. बोम्मई का हवाला कांड में नाम आने के बाद मिला था। लालू यादव अक्सर कहते थे, "हवाला ने जनता दल को मेरे हवाले कर दिया।"
जब लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन किया, तब वे जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री भी थे। खास बात यह थी कि उनकी ही पार्टी के नेता प्रधानमंत्री थे। यह उनके राजनीतिक जीवन का सुनहरा दौर था, लेकिन इसी दौरान सीबीआई ने चारा घोटाले में उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने का फैसला किया।
चारा घोटाले की जांच की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार के दौरान हुई थी, लेकिन इसे आगे बढ़ाने का काम एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार के समय हुआ। यह मामला आगे चलकर लालू यादव की राजनीति के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया।
निष्कर्ष
फुलवारिया के एक साधारण परिवार से आने वाले लालू यादव की राजनीतिक यात्रा संघर्षों और अवसरों का मिश्रण रही है। पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से लेकर लोकसभा तक का सफर उनके तेज दिमाग, हास्यबोध और राजनीतिक सूझबूझ का प्रमाण है। समाजवादी आंदोलनों से प्रेरित होकर उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई और आगे चलकर राज्य के मुख्यमंत्री भी बने। लालू यादव की कहानी न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्षों को दर्शाती है बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक साधारण गांव का लड़का बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रभाव छोड़ सका।
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